Surah Hashr in Hindi । सूरह अल-हश्र हिन्दी में
Surah Hashr : अस्सलाम अलैकूम दोस्तों। हमारे प्यारे मुसलमान भाईयों हमने आपके लिए कुरआन मजीद की एक और सूरह सूरह हश्र हिंदी में ( Surah Hashr in Hindi) मे और अरबी में लिख दिया है। सूरह हश्र कुरआन मजीद की 59 नम्बर सूरह है। इसमें कुल 24 आयतें हैं। यह सूरह मदनी है। दोस्तों सूरह हश्र विडियो और पीडीएफ (surah hashr pdf) दोनों साथ में अटैच है इसे आप आसानी से डाउनलोड कर के देख और पढ़ सकते हैं। दोस्तों सूरह हश्र की आखरी 3 आयतें (surah hashr last 3 ayat) आप निचे जाकर आसानी से पढ़ सकते हैं। surah hashr last 3 ayat, surah hashr, surah hashr ki akhri ayat, surah hashr ki akhri 3 ayat, surah hashr last 4 ayat, surah hashr last 2 ayat, surah hashr last 3 verses, surah hashr last 3 ayat hadith
अल्लाह तआला हमें और आपको कुरआन मजीद पढ़ने और समझने और उसपर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन।
Surah Hashr in Hindi । सूरह अल-हश्र हिन्दी में |
Download Surah Hashr Pdf । डाउनलोड सूरह अल-हश्र पीडीएफ
Watch Surah Hashr Video । सूरह अल-हश्र विडियो
Surah Hashr in Hindi । सूरह अल-हश्र हिन्दी में
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(1)
سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
सब्ब – ह लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि व हुवल् अ़ज़ीजुल – हकीम ।
(2)
هُوَ ٱلَّذِىٓ أَخْرَجَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ مِن دِيَٰرِهِمْ لِأَوَّلِ ٱلْحَشْرِ مَا ظَنَنتُمْ أَن يَخْرُجُوا۟ وَظَنُّوٓا۟ أَنَّهُم مَّانِعَتُهُمْ حُصُونُهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَأَتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِنْ حَيْثُ لَمْ يَحْتَسِبُوا۟ وَقَذَفَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعْبَ يُخْرِبُونَ بُيُوتَهُم بِأَيْدِيهِمْ وَأَيْدِى ٱلْمُؤْمِنِينَ فَٱعْتَبِرُوا۟ يَٰٓأُو۟لِى ٱلْأَبْصَٰرِ
हुवल्लज़ी अख़ – रजल्लज़ी – न क – फ़रू मिन् अह़्लिल् किताबि मिन् दियारिहिम् लि – अव्वलिल् हशरि , मा ज़नन्तुम् अंय्यख़्रुजू व ज़न्नू अन्नहुम् मानि अ़तुहुम् हुसूनुहुम् मिनल्लाहि फ़ – अताहुमुल्लाहु मिन् हैसु लम् यहतसिबू व क – ज़ – फ़ फ़ी कुलूबिहिमुर्रुअ् ब युखरिबू – न बुयू -तहुम् बि – ऐ दीहिम् व ऐदिल् मुअ्मिनी – न फ़अ्तबिरू या उलिल् – अब्सार ।
(3)
وَلَوْلَآ أَن كَتَبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمُ ٱلْجَلَآءَ لَعَذَّبَهُمْ فِى ٱلدُّنْيَا وَلَهُمْ فِى ٱلْءَاخِرَةِ عَذَابُ ٱلنَّارِ
व लौ ला अन् क – तबल्लाहु अ़लैहिमुल् – जला – अ लअ़ज़्ज़ – बहुम् फिद्दुन्या , व लहुम् फ़िल् – आख़िरति अ़ज़ाबुन्नार ।
(4)
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ شَآقُّوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَمَن يُشَآقِّ ٱللَّهَ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
ज़ालि – क बि – अन्नहुम् शाक़्कुल्ला – ह व रसूलहू व मंय्युशाक़्क़िल्ला – ह फ़ – इन्नल्ला – ह शदीदुल अिकाब ।
(5)
مَا قَطَعْتُم مِّن لِّينَةٍ أَوْ تَرَكْتُمُوهَا قَآئِمَةً عَلَىٰٓ أُصُولِهَا فَبِإِذْنِ ٱللَّهِ وَلِيُخْزِىَ ٱلْفَٰسِقِينَ
मा क़ – तअ्तुम् मिल्ली – नतिन् औ तरक्तुमूहा का़इ मतन् अ़ला उसूलिहा फ़बि – इज् निल्लाहि व लियुख़्जि यल् फ़ासिक़ीन ।
(6)
وَمَآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ مِنْهُمْ فَمَآ أَوْجَفْتُمْ عَلَيْهِ مِنْ خَيْلٍ وَلَا رِكَابٍ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يُسَلِّطُ رُسُلَهُۥ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ
व मा अफ़ा – अल्लाहु अ़ला रसूलिही मिन्हुम् फ़मा औजफ़्तुम् अ़लैहि मिन् खैलिंव् – व ला रिकाबिंव् – व लाकिन्नल्ला – ह युसल्लितु रुसु – लहू अ़ला मंय्यशा – उ , वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर ।
(7)
مَّآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ مِنْ أَهْلِ ٱلْقُرَىٰ فَلِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَٰمَىٰ وَٱلْمَسَٰكِينِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ كَىْ لَا يَكُونَ دُولَةًۢ بَيْنَ ٱلْأَغْنِيَآءِ مِنكُمْ وَمَآ ءَاتَىٰكُمُ ٱلرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَىٰكُمْ عَنْهُ فَٱنتَهُوا۟ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
मा अफा – अल्लाहु अ़ला रसूलिही मिन् अहलिल् – कुरा फ़ – लिल्लाहि व लिर्रसूलि व लिज़िल् – कुरबा वल्यतामा वल् मसाकीनि वब्निस्सबीलि कै ला यकू – न दू – लतम् – बैनल् – अग्निया – इ मिन्कुम् , व मा आताकुमुर्रसूलु फ़खुजूहु व मा नहाकुम् अ़न्हु फ़न्तहू वत्तकुल्ला – ह , इन्नल्ला – ह शदीदुल् – अ़िकाब ।
(8)
لِلْفُقَرَآءِ ٱلْمُهَٰجِرِينَ ٱلَّذِينَ أُخْرِجُوا۟ مِن دِيَٰرِهِمْ وَأَمْوَٰلِهِمْ يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضْوَٰنًا وَيَنصُرُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلصَّٰدِقُونَ
लिल्फु – क़राइल् – मुहाजिरीनल्लज़ी – न उख़्रिजू मिन् दियारिहिम् व अम्वालिहिम् यब्तगू – न फ़ज़्लम् मिनल्लाहि व रिजवानंव् – व यन्सुरूनल्ला – ह व रसूलहू , उलाइ – क हुमुस्सादिकून ।
(9)
وَٱلَّذِينَ تَبَوَّءُو ٱلدَّارَ وَٱلْإِيمَٰنَ مِن قَبْلِهِمْ يُحِبُّونَ مَنْ هَاجَرَ إِلَيْهِمْ وَلَا يَجِدُونَ فِى صُدُورِهِمْ حَاجَةً مِّمَّآ أُوتُوا۟ وَيُؤْثِرُونَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ وَمَن يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِۦ فَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ
वल्लज़ी – न त – बब्वउद्दा – र वलईमा – न मिन् क़ब्लिहिम् युहिब्बू – न मन् हाज – र इलैहिम् व ला यजिदू – न फ़ी सुदूरिहिम् हा – जतम् – मिम्मा ऊतू व युअसिरू – न अ़ला अन्फुसिहिम् व लौ का – न बिहिम् ख़सा – सतुन् , व मंय्यू क शुह् – ह नफ़्सिही फ़ – उलाइ – क हुमुल् – मुफ्लिहून ।
(10)
وَٱلَّذِينَ جَآءُو مِنۢ بَعْدِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا ٱغْفِرْ لَنَا وَلِإِخْوَٰنِنَا ٱلَّذِينَ سَبَقُونَا بِٱلْإِيمَٰنِ وَلَا تَجْعَلْ فِى قُلُوبِنَا غِلًّا لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ رَبَّنَآ إِنَّكَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ
वल्लज़ी – न जाऊ मिम्बअ्दिहिम् यकूलू – न रब्बनग़्फिर लना व लि – इख़्वानिनल्लज़ी – न स – बकूना बिल् – ईमानि व ला तज्अल् फ़ी कुलूबिना गिल्लल् – लिल्लज़ी – न आमनू रब्बना इन्न – क रऊफुर्रहीम ।
(11)
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ نَافَقُوا۟ يَقُولُونَ لِإِخْوَٰنِهِمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ لَئِنْ أُخْرِجْتُمْ لَنَخْرُجَنَّ مَعَكُمْ وَلَا نُطِيعُ فِيكُمْ أَحَدًا أَبَدًا وَإِن قُوتِلْتُمْ لَنَنصُرَنَّكُمْ وَٱللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَٰذِبُونَ
अलम् त – र इलल्लज़ी – न नाफ़कू यकूलू – न लि – इख़्वानिहिमुल्लज़ी – न क – फ़रू मिन् अह़्लिल् – किताबि ल – इन् उख़्रिज्तुम् ल – नख़्रुजन – न म – अ़कुम् व ला नुतीअु फ़ीकुम् अ – हदन् अ – बदंव् – व इन् कूतिल्तुम् ल – नन्सुरन्नकुम् , वल्लाहु यश्हदु इन्नहुम् लकाज़िबून ।
(12)
لَئِنْ أُخْرِجُوا۟ لَا يَخْرُجُونَ مَعَهُمْ وَلَئِن قُوتِلُوا۟ لَا يَنصُرُونَهُمْ وَلَئِن نَّصَرُوهُمْ لَيُوَلُّنَّ ٱلْأَدْبَٰرَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ
ल – इन् उख़्रिजू ला यख़्रुजू – न म – अ़हुम् व ल – इन् कूतिलू ला यन्सुरूनहुम् व ल – इन् – न – सरूहुम् लयु – वल्लुन्नल् – अदबा – र , सुम् – म ला युन्सरून ।
(13)
لَأَنتُمْ أَشَدُّ رَهْبَةً فِى صُدُورِهِم مِّنَ ٱللَّهِ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ
ल – अन्तुम् अशद्दु रह् – बतन् फी सुदूरिहिम् मिनल्लाहि , ज़ालि – क बि – अन्नहुम् कौ़मुल – ला यफ़्क़हून ।
(14)
لَا يُقَٰتِلُونَكُمْ جَمِيعًا إِلَّا فِى قُرًى مُّحَصَّنَةٍ أَوْ مِن وَرَآءِ جُدُرٍۭ بَأْسُهُم بَيْنَهُمْ شَدِيدٌ تَحْسَبُهُمْ جَمِيعًا وَقُلُوبُهُمْ شَتَّىٰ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُونَ
ला युक़ातिलूनकुम् जमीअ़न् इल्ला फ़ी कुरम् मुहस्स – नतिन् औ मिंव्वरा – इ जुदुरिन , बअ्सुहुम् बैनहुम् शदीदुन् , तहसबुहुम् जमीअ़ंव् – व कुलूबुहुम् शत्ता , ज़ालि – क बि – अन्नहुम् कौ़मुल् – ला यअकिलून ।
(15)
كَمَثَلِ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ قَرِيبًا ذَاقُوا۟ وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
क – म – सलिल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् क़रीबन् ज़ाकू व बा – ल अम्रिहिम् व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम ।
(16)
كَمَثَلِ ٱلشَّيْطَٰنِ إِذْ قَالَ لِلْإِنسَٰنِ ٱكْفُرْ فَلَمَّا كَفَرَ قَالَ إِنِّى بَرِىٓءٌ مِّنكَ إِنِّىٓ أَخَافُ ٱللَّهَ رَبَّ ٱلْعَٰلَمِينَ
क – म – सलिश्शैतानि इज् का – ल लिल् – इन्सानिक्फुर फ़ – लम्मा क – फ़ – र का – ल इन्नी बरीउम् – मिन् – क इन्नी अख़ाफुल्ला – ह रब्बल् – आ़लमीन ।
(17)
فَكَانَ عَٰقِبَتَهُمَآ أَنَّهُمَا فِى ٱلنَّارِ خَٰلِدَيْنِ فِيهَا وَذَٰلِكَ جَزَٰٓؤُا۟ ٱلظَّٰلِمِينَ
फ़का – न आ़कि – ब – तहुमा अन्नहुमा फ़िन्नारि ख़ालिदैनि फ़ीहा , व ज़ालि – क जज़ाउज़्ज़ालिमीन ।
***
(18)
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَلْتَنظُرْ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ لِغَدٍ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ
या अय्युहल्लज़ी – न आमनुत्तकुल्ला – ह वल्तन्जुर् नफ़्सुम् – मा क़द्द – मत् लि – ग़दिन् वत्तकुल्ला – ह , इन्नल्ला – ह ख़बीरुम् – बिमा तअ्मलून ।
(19)
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ نَسُوا۟ ٱللَّهَ فَأَنسَىٰهُمْ أَنفُسَهُمْ أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَٰسِقُونَ
व ला तकूनू कल्लज़ी – न नसुल्ला – ह फ़ – अन्साहुम् अन्फु – सहुम् , उलाइ – क हुमुल् – फ़ासिकून ।
(20)
لَا يَسْتَوِىٓ أَصْحَٰبُ ٱلنَّارِ وَأَصْحَٰبُ ٱلْجَنَّةِ أَصْحَٰبُ ٱلْجَنَّةِ هُمُ ٱلْفَآئِزُونَ
ला यस्तवी अस्हाबुन्नारि व अस्हाबुल् – जन्नति , अस्हाबुल् – जन्नति हुमुल् – फ़ाइजून ।
(21)
لَوْ أَنزَلْنَا هَٰذَا ٱلْقُرْءَانَ عَلَىٰ جَبَلٍ لَّرَأَيْتَهُۥ خَٰشِعًا مُّتَصَدِّعًا مِّنْ خَشْيَةِ ٱللَّهِ وَتِلْكَ ٱلْأَمْثَٰلُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ
लौ अन्ज़ल्ना हाज़ल – कुरआ – न अ़ला ज – बलिल् – ल – रऐ – तहू ख़ाशिअ़म् मु – तसद्दिअ़म् मिन् ख़श् – यतिल्लाहि , व तिल्कल् – अम्सालु नज्रिबुहा लिन्नासि लअ़ल्लहुम् य – तफ़क्करून ।
Surah Hashr Last 3 Ayat - Surah Hashr Ki Akhri 3 Ayat
(22)
هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِى لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ عَٰلِمُ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ هُوَ ٱلرَّحْمَٰنُ ٱلرَّحِيمُ
हुवल्लाहुल्लज़ी ला इला – ह इल्ला हु – व आ़लिमुल् – गै़बि वश्शहा – दति हुवर् – रह़्मानुर्रहीम ।
(23)
هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِى لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْمَلِكُ ٱلْقُدُّوسُ ٱلسَّلَٰمُ ٱلْمُؤْمِنُ ٱلْمُهَيْمِنُ ٱلْعَزِيزُ ٱلْجَبَّارُ ٱلْمُتَكَبِّرُ سُبْحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ
हुवल्लाहुल्लज़ी ला इला – ह इल्ला हु – व अल्मलिकुल् – कुद्दूसुस् – सलामुल् मुअ्मिनुल् – मुहैमिनुल – अज़ीजुल् जब्बारुल – मु – तकब्बिरु , सुब्हानल्लाहि अ़म्मा युश्रिकून ।
(24)
هُوَ ٱللَّهُ ٱلْخَٰلِقُ ٱلْبَارِئُ ٱلْمُصَوِّرُ لَهُ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ يُسَبِّحُ لَهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
हुवल्लाहुल् ख़ालिकुल् बारिउल् मुसव्विरु लहुल् अस्मा – उल् – हुस्ना , युसब्बिहु लहू मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि व हुवल् अ़ज़ीजुल – हकीम ।
*****
Conclusion:
दोस्तों रमज़ान का मुबारक महीना आने वाला है। आप लोगों से गुजारिश है की इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर जरुर करे। ताकि वो लोग भी इस रमजान अल्लाह तबारक व तआला की खुब इबादत करें। और अपने गुनाहों से तौबा करें। कुरान की सूरह शेयर करना भी बहुत बड़ा सवाब का काम है। दोस्तों कमेंट में माशाअल्लाह जरूर लिखें। आपके कॉमेंट पढ़ कर हमें हौसला मिलता है।अल्लाह तआला हमें और आपको कुरआन मजीद पढ़ने और समझने और उसपर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन।
पढ़ें:- Ayatul kursi in Hindi । आयतूल कुर्सी हिंदी में
#Tags #surah-hashr-last-3-ayat #surah hashr #surah hashr ki akhri ayat #surah hashr ki akhri 3 ayat, #surah hashr last 4 ayat, #surah hashr last 2 ayat, #surah hashr last 3 verses, #surah hashr last 3 ayat hadith