Surah Fatah In Hindi - सूरह फतह हिन्दी में।

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अस्सलाम अलैकूम दोस्तों:- दोस्तों सूरह फतह कुरआन मजीद की 48 नम्बर सूरह है। इसमें कुल 29 आयतें और 4 रुकूं है। दोस्तों सूरह अल फतह कुरआन मजीद के 26 वें पारे में है। सूरह फतह मदीना में नाजील हुईं हैं।
दोस्तों सूरह फतह का विडियो और सूरह अल फतह का पीडीएफ भी निचे मौजूद है। अगर आप आफलाइन इस सूरह को पढ़ना चाहते हैं तो Surah Fatah Pdf Download कर ले।

Surah Fatah In Hindi - सूरह फतह हिन्दी में।


Surah Fatah In Hindi - सूरह फतह हिन्दी में।


बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
(1)
इन्ना फ़ -तह्ना ल-क फ़त्हम् – म़ुबीना

(ऐ रसूल) ये हुबैदिया की सुलह नहीं बल्कि हमने हक़ीक़तन तुमको खुल्लम खुल्ला फतेह अता की।
(2)
लि-यग़्फ़ि र लकल्लाहु मा तक़द्द-म मिन् ज़म्बि-क व मा त अख़्ख़-र व युतिम्-म निअ्-म-तहू अ़लै-क व यह्दि-य-क सिरातम्- मुस्तक़ीमा

ताकि अल्लाह तुम्हारी उम्मत के अगले और पिछले गुनाह माफ़ कर दे और तुम पर अपनी नेअमत पूरी करे और तुम्हें सीधी राह पर साबित क़दम रखे।

(3)
व यन्सु-रकल्लाहु नस्रन् अज़ीज़ा

और अल्लाह तुम्हारी ज़बरदस्त मदद करे।
(4)
हुवल्लज़ी अन्ज़लस्सकि-न-त फ़ी क़ुलूबिल्-मुअ्मिनी-न लि-यज़्दादू ईमानम्-म-अ़ ईमानिहिम्, व लिल्लाहि जुनूदुस्समावाति वल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु अ़लीमन् हकीमा

वह (वही) अल्लाह तो है जिसने मोमिनीन के दिलों में तसल्ली नाजि़ल फ़रमाई ताकि अपने (पहले) ईमान के साथ और ईमान को बढ़ाएँ और सारे आसमान व ज़मीन के लशकर तो अल्लाह ही के हैं और अल्लाह बड़ा वाकि़फकार हकीम है।

(5)
लियुद्ख़िलल्- मुअ्मिनी-न वल्मुमिनाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा व युकफ़्फ़ि-र अ़न्हुम् सय्यिआ-तिहिम्, व का-न ज़ालि – क अिन्दल्लाहि फ़ौज़न् अ़ज़ीमा

ताकि मोमिन मर्द और मोमिना औरतों को (बेहिश्त) के बाग़ों में जा पहुँचाए जिनके नीचे नहरें जारी हैं और ये वहाँ हमेशा रहेंगे और उनके गुनाहों को उनसे दूर कर दे और ये अल्लाह के नज़दीक बड़ी कामयाबी है।

(6)
व युअ़ज़्ज़िबल् – मुनाफिकीन वल्मुनाफ़िक़ाति वल् – मुश्रिकी-न वल्मुश्रिकातिज़् ज़ान्नी-न बिल्लाहि ज़न्नस्सौइ, अ़लैहिम् दाइ-रतुस्- सौइ व ग़ज़िबल्लाहु अ़लैहिम् व ल-अ़-नहुम् व अ-अ़द्-द लहुम् जहन्न-म व साअत् मसीरा

और मुनाफिक़ मर्द और मुनाफि़क़ औरतों और मुशरिक मर्द और मुशरिक औरतों पर जो अल्लाह के हक़ में बुरे बुरे ख़्याल रखते हैं। अज़ाब नाजि़ल करे उन पर (मुसीबत की) बड़ी गर्दिश है (और अल्लाह) उन पर ग़ज़बनाक है और उसने उस पर लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है और वह (क्या) बुरी जगह है।

(7)
व लिल्लाहि जुनूदुस्समावाति वल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु अ़ज़ीज़न् हकीमा

और सारे आसमान व ज़मीन के लशकर अल्लाह ही के हैं और अल्लाह तो बड़ा वाकि़फ़कार (और) ग़ालिब है।

(8)
इन्ना अर्सल्ना- क शाहिदंव्-व मुबश्शिरंव्-व नज़ीरा

(ऐ रसूल) हमने तुमको (तमाम आलम का) गवाह और ख़ुशख़बरी देने वाला और धमकी देने वाला (पैग़म्बर बनाकर) भेजा।

(9)
लितुअ्मिनू बिल्लाहि व रसूलिही व तुअ़ज़्ज़िरूहु व तुवक़्क़िरूहु, व तुसब्बिहूहु बुक्र-तंव्-व असीला

ताकि (मुसलमानों) तुम लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसको बुज़़ुर्ग समझो और सुबह और शाम उसी की तस्बीह करो।

(10)
इन्नल्लज़ी-न युबायिअून-क इन्नमा युबायिअूनल्ला-ह, यदुल्लाहि फ़ौ-क़ ऐदीहिम् फ़-मन्-न-क-स फ़-इन्नमा यन्कुसु अ़ला नफ़्सिही व मन् औफ़ा बिमा आ़-ह- द अ़लैहुल्ला-ह फ़- सयुअ्तीहि अज्रन् अ़ज़ीमा

बेशक जो लोग तुमसे बैयत करते हैं वह अल्लाह ही से बैयत करते हैं अल्लाह की क़ूवत (क़ुदरत तो बस सबकी कूवत पर) ग़ालिब है तो जो अहद को तोड़ेगा तो अपने अपने नुक़सान के लिए अहद तोड़ता है और जिसने उस बात को जिसका उसने अल्लाह से अहद किया है पूरा किया तो उसको अनक़रीब ही अज्रे अज़ीम अता फ़रमाएगा।

(11)
स- यक़ूलु ल-कल्- मुख़ल्लफ़ू-न मिनल्-अअ्-राबि श- ग़लत्ना अम्वालुना व अह्लूना फ़स्तग़्फ़िर् लना यक़ूलू-न बि- अल्सि – नतिहिम् मा लै-स फ़ी क़ुलूबिहिम्, क़ुल् फ़-मंय्यम्लिकु लकुम् मिनल्लाहि शैअन् इन् अरा-द बिकुम् ज़र्रन् औ अरा-द बिकुम् नफ़्अ़नू, बल् कानल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा

जो गंवार देहाती (हुदैबिया से) पीछे रह गए अब वह तुमसे कहेंगे कि हमको हमारे माल और लड़के वालों ने रोक रखा तो आप हमारे वास्ते (अल्लाह से) मग़फिरत की दुआ माँगें ये लोग अपनी ज़बान से ऐसी बातें कहते हैं जो उनके दिल में नहीं। (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अगर अल्लाह तुम लोगों को नुक़सान पहुँचाना चाहे या तुम्हें फायदा पहुँचाने का इरादा करे तो अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे लिए किसका बस चल सकता है। बल्कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे ख़ूब वाकि़फ है।

(12)
बल् ज़नन्तुम् अल्लंय्यन्क़ लिबर् रसूलु वल्- मुअ्मिनू-न इला अल्लीहिम् अ- बदंव् व ज़ुय्यि-न ज़ालि-क फ़ी क़ुलूबिकुम् व ज़नन्तुम् ज़न्नस्सौइ व कुन्तुम् क़ौमम् – बूरा

(ये फ़क़त तुम्हारे हीले हैं) बात ये है कि तुम ये समझे बैठे थे कि रसूल और मोमिनीन हरगिज़ कभी अपने लड़के वालों में पलट कर आने ही के नहीं (और सब मार डाले जाएँगे) और यही बात तुम्हारे दिलों में भी खप गयी थी। और इसी वजह से, तुम तरह तरह की बदगुमानियाँ करने लगे थे और (आखि़रकार) तुम लोग आप बरबाद हुए।

(13)
व मल्लम् युअ्मिम्-बिल्लाहि व रसूलिही फ़-इन्ना अअ्तद्ना लिल्काफ़िरी-न सईरा

और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाए तो हमने (ऐसे) काफि़रों के लिए जहन्नुम की आग तैयार कर रखी है।

(14)
व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि यग़्फ़िरु लिमंय्यशा- उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, व कानल्लाहु ग़फ़ूरर्-रहीमा

और सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही की है जिसे चाहे बख़्श दे और जिसे चाहे सज़ा दे और अल्लाह तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।

(15)
स यक़ूलुल्- मुख़ल्लफ़ू-न इज़न्त-लक़्तुम् इला मग़ानि-म लितअ्खुजूहा ज़रूना नत्तबिअ्कुम् युरीदू-न अंय्युबद्दिलू कलामल्लाहि, क़ुल्-लन् तत्तबिअूना कज़ालिकुम् क़ालल्लाहु मिन् क़ब्लु फ़-स-यक़ूलू-न बल् त ह्सुदू-नना बल् कानू ला यक़्क़हू-न इल्ला क़लीला

(मुसलमानों) अब जो तुम (ख़ैबर की) ग़नीमतों के लेने को जाने लगोगे तो जो लोग (हुदैबिया से) पीछे रह गये थे तुम से कहेंगे कि हमें भी अपने साथ चलने दो ये चाहते हैं कि अल्लाह के क़ौल को बदल दें तुम (साफ) कह दो कि तुम हरगिज़ हमारे साथ नहीं चलने पाओगे। अल्लाह ने पहले ही से ऐसा फ़रमा दिया है तो ये लोग कहेंगे कि तुम लोग तो हमसे हसद रखते हो (अल्लाह ऐसा क्या कहेगा) बात ये है कि ये लोग बहुत ही कम समझते हैं।

(16)
क़ुल् लिल्-मुख़ल्लफ़ी -न मिनल्-अअ्-राबि स-तुद्औ़-न इला क़ौमिन् उली बअ्सिन् शदीदिन् तुक़ातिलूनहुम् औ युस्लिमू-न फ़-इन् तुतीअू युअ्तिकुमुल्लाहु अज्रन् ह – सनन् व इन् त- तवल्लौ कमा तवल्लैतुम् मिन् क़ब्लु युअ़ज़्ज़िब्कुम् अ़ज़ाबन् अलीमा

कि जो गवाँर पीछे रह गए थे उनसे कह दो कि अनक़रीब ही तुम सख़्त जंगजू क़ौम के (साथ लड़ने के लिए) बुलाए जाओगे कि तुम (या तो) उनसे लड़ते ही रहोगे या मुसलमान ही हो जाएँगे पस अगर तुम (अल्लाह का) हुक्म मानोगे तो अल्लाह तुमको अच्छा बदला देगा। और अगर तुमने जिस तरह पहली दफा सरताबी की थी अब भी सरताबी करोगे तो वह तुमको दर्दनाक अज़ाब की सज़ा देगा।

(17)
लै-स अ़लल्-अअ्मा ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-अअ्रजि ह-रजुंव्-व ला अ़लल् मरीज़ि ह-रजुन्, व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू युद्खिल्हु जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारु व मंय्य-तवल्-ल युअ़ज़्ज़िब्हु अ़ज़ाबन् अलीमा

(जेहाद से पीछे रह जाने का) न तो अन्धे ही पर कुछ गुनाह है और न लँगड़े पर गुनाह है और न बीमार पर गुनाह है और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म मानेगा। तो वह उसको (बहिश्त के) उन सदाबहार बाग़ों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और जो सरताबी करेगा वह उसको दर्दनाक अज़ाब की सज़ा देगा।

(18)
ल-क़द् रज़ियल्लाहु अ़निल्-मुअ्मिनी-न इज़् युबायिअून-क तह्तश्श-ज-रति फ़-अ़लि-म मा फ़ी क़ुलूबिहिम् फ़-अन्ज़-लस्सकी-न-त अ़लैहिम् व असाबहुम् फ़तहन् क़रीबा

जिस वक़्त मोमिनीन तुमसे दरख़्त के नीचे (लड़ने मरने) की बैयत कर रहे थे तो अल्लाह उनसे इस (बात पर) ज़रूर ख़ुश हुआ ग़रज़ जो कुछ उनके दिलों में था अल्लाह ने उसे देख लिया। फिर उन पर तस्सली नाजि़ल फ़रमाई और उन्हें उसके एवज़ में बहुत जल्द फ़तेह इनायत की।

(19)
व मग़ानि-म कसी-रतंय्-यअ्ख़ुज़ूनहा, व कानल्लाहु अ़ज़ीज़न् हकीमा

और (इसके अलावा) बहुत सी ग़नीमतें (भी) जो उन्होने हासिल की (अता फरमाई) और अल्लाह तो ग़ालिब (और) हिकमत वाला है।

(20)
व-अ़-दकुमुल्लाहु मग़ानि-म कसी-रतन् तअ्ख़ुजूनहा फ़-अ़ज्ज-ल लकुम् हाज़िही व क़फ़्-फ़ ऐदि यन्नासि अ़न्कुम् व लितकू-न आ-यतल्-लिल्मुअ्मिनी-न व यह्दि-यकुम् सिरातम्- मुस्तक़ीमा

अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ग़नीमतों का वायदा फ़रमाया था कि तुम उन पर काबिज़ हो गए तो उसने तुम्हें ये (ख़ैबर की ग़नीमत) जल्दी से दिलवा दीं और (हुबैदिया से) लोगों की दराज़ी को तुमसे रोक दिया। और ग़रज़ ये थी कि मोमिनीन के लिए (क़ुदरत) का नमूना हो और अल्लाह तुमको सीधी राह पर ले चले।

(21)
व उख़्रा लम् तक़्दिरू अ़लैहा क़द् अहातल्लाहु बिहा, व कानल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीरा

और दूसरी (ग़नीमतें भी दी) जिन पर तुम क़ुदरत नहीं रखते थे (और) अल्लाह ही उन पर हावी था और अल्लाह तो हर चीज़ पर क़ादिर है।

(22)
व लौ क़ात-लकुमुल्लज़ी-न क- फ़रू ल-वल्लवुल् – अद्बा-र सुम्म ला यजिदू-न वलिय्यंव् व ला नसीरा

(और) अगर कुफ़्फ़ार तुमसे लड़ते तो ज़रूर पीठ फेर कर भाग जाते फिर वह न (अपना) किसी को सरपरस्त ही पाते न मददगार।

(23)
सुन्नतल्लाहिल्लती क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लु व लन् तजि-द लिसुन्नतिल्लाहि तब्दीला

यही अल्लाह की आदत है जो पहले ही से चली आती है और तुम अल्लाह की आदत को बदलते न देखोगे।

(24)
व हुवल्लज़ी कफ़्-फ़ ऐदि-यहुम् अ़न्कुम् व ऐदि-यकुम् अ़न्हुम् बि-बत्नि मक्क-त मिम्-बअ्दि अन् अज़्-फ़- रकुम् अ़लैहिम्, व कानल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीरा

और वह वही तो है जिसने तुमको उन कुफ़्फ़ार पर फ़तेह देने के बाद मक्के की सरहद पर उनके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे रोक दिए और तुम लोग जो कुछ भी करते थे अल्लाह उसे देख रहा था।

(25)
हुमुल्लज़ी – न क-फ़रू व सद्दूकुम् अ़निल्-मस्जिदिल्- हरामि वल्हद्य मअ़कूफ़न् अंय्यब्लु-ग़ महिल्-लहू, व लौ ला रिजालुम् – मुअ्मिनू-न व निसाउम् मुअ्मिनातुल्-लम् तअ्लमूहुम् अन् त-तऊहुम् फ़तुसी-बकुम् मिन्हुम् म- अ़र्रतुम् – बिग़ैरि अिल्मिन् लियुद्ख़िलल्लाहु फ़ी रह्मतिही मंय्यशा- उ लौ तज़य्यलू ल- अ़ज़्ज़ब्नल्लज़ी-न क-फ़रू मिन्हुम् अ़ज़ाबन् अलीमा

ये वही लोग तो हैं जिन्होने कुफ़्र किया और तुमको मस्जिदुल हराम (में जाने) से रोका और क़ुरबानी के जानवरों को भी (न आने दिया) कि वह अपनी (मुक़र्रर) जगह (में) पहुँचने से रूके रहे। और अगर कुछ ऐसे ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें न होती जिनसे तुम वाकि़फ न थे कि तुम उनको (लड़ाई में कुफ़्फ़ार के साथ) पामाल कर डालते पस तुमको उनकी तरफ़ से बेख़बरी में नुकसान पहँच जाता (तो उसी वक़्त तुमको फतेह हुयी मगर ताख़ीर) इसलिए (हुयी) कि अल्लाह जिसे चाहे अपनी रहमत में दाखि़ल करे। और अगर वह (ईमानदार कुफ़्फ़ार से) अलग हो जाते तो उनमें से जो लोग काफि़र थे हम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ज़रूर सज़ा देते।

(26)
इज् ज-अ़लल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ी क़ुलूबिहिमुल् -हमिय्य-त हमिय्यतल्- जाहिलिय्यति फ़-अन्ज़लल्लाहु सकी-न-तहू अ़ला रसूलिही व अ़लल् मुअ्मिनी-न व अल्ज़-महुम् कलि-मतत्-तक़्वा व कानू अ-हक़्-क् बिहा व अह्लहा, व कानल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीमा

(ये वह वक़्त) था जब काफि़रों ने अपने दिलों में जि़द ठान ली थी और जि़द भी तो जाहिलियत की सी तो अल्लाह ने अपने रसूल और मोमिनीन (के दिलों) पर अपनी तरफ़ से तसकीन नाजि़ल फ़रमाई। और उनको परहेज़गारी की बात पर क़ायम रखा और ये लोग उसी के सज़ावार और एहल भी थे और अल्लाह तो हर चीज़ से ख़बरदार है।

(27)
ल-क़द् स-दक़ल्लाहु रसूलहुर्रूअ्या बिल्हक़्क़ि ल- तद्ख़ुलून्नल् – मस्जिदल्-हरा-म इन् शा-अल्लाहु आमिनी-न मुहल्लिक़ी -न रुऊ-सकुम् व मुक़स्सिरी-न ला तख़ाफ़ू-न, फ़-अ़लि म मा लम् तअ्लमू फ़-ज-अ़-ल मिन् दूनि ज़ालि क फ़त्हन् क़रीबा

बेशक अल्लाह ने अपने रसूल को सच्चा मुताबिके़ वाक़ेया ख़्वाब दिखाया था कि तुम लोग इन्शाअल्लाह मस्जिदुल हराम में अपने सर मुँडवा कर और अपने थोड़े से बाल कतरवा कर बहुत अमन व इत्मेनान से दाखि़ल होंगे (और) किसी तरह का ख़ौफ न करोगे तो जो बात तुम नहीं जानते थे उसको मालूम थी तो उसने फ़तेह मक्का से पहले ही बहुत जल्द फतेह अता की।

(28)
हुवल्लज़ी अर्स-ल रसूलहू बिल्हुदा व दीनिल् हक़्क़ि लियुज़्हि रहू अ़लद्दीनि क़ुल्लिही, व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा

वह वही तो है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चा दीन देकर भेजा ताकि उसको तमाम दीनों पर ग़ालिब रखे और गवाही के लिए तो बस अल्लाह ही काफ़ी है।

(29)
मुहम्मदुर्-रसूलुल्लाहि, वल्लज़ी-न म-अ़हू अशिद्दा उ अ़लल्-कुफ़्फ़ारि रु-हमा-उ बैनहुम् तराहुम् रुक्क- अ़न् सुज्ज-दंय्यब्तग़ू न फ़ज़्लम्- मिनल्लाहि व रिज़्वानन् सीमाहुम् फ़ी वुजूहिहिम्-मिन् अ-सरिस्सुजूदि, ज़ालि-क म-सलुहुम् फ़ित्तौराति व म- सलुहुम् फ़िल्-इन्जीलि, क-ज़र्अिन् अख़र-ज शत्-अहू फ़आ-ज़-रहू फ़स्तग़्-ल-ज़ फ़स्तवा अ़ला सूक़िही युअ्जिबुज़्ज़ुर्रा-अ़ लि-यग़ी-ज़ बिहिमुल्–कुफ़्फ़ा-र, व अ़द- -ल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति मिन्हुम् मग़्फ़ि -रतंव् व अज्रन् अ़ज़ीमा


मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और जो लोग उनके साथ हैं, काफि़रों पर बड़े सख़्त और आपस में बड़े रहम दिल हैं तू उनको देखेगा (कि अल्लाह के सामने) झुके सर बसजूद हैं। अल्लाह के फज़ल और उसकी ख़ुशनूदी के ख़्वास्तगार हैं कसरते सुजूद के असर से उनकी पेशानियों में घट्टे पड़े हुए हैं यही औसाफ़ उनके तौरेत में भी हैं और यही हालात इंजील में (भी मज़कूर) हैं। गोया एक खेती है जिसने (पहले ज़मीन से) अपनी सूई निकाली फिर (अजज़ा ज़मीन को गे़ज़ा बनाकर) उसी सूई को मज़बूत किया तो वह मोटी हुयी फिर अपनी जड़ पर सीधी खड़ी हो गयी और अपनी ताज़गी से किसानों को ख़ुश करने लगी। और इतनी जल्दी तरक़्क़ी इसलिए दी ताकि उनके ज़रिए काफि़रों का जी जलाएँ। जो लोग ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे अल्लाह ने उनसे बख़शिश और अज्रे अज़ीम का वायदा किया है।

Surah Fatah Pdf 

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FAQ 

Q.1- सूरह अल-फतह कुरआन मजीद के किस पारे में है ?
Ans- सूरह अल-फतह कुरआन मजीद के 26 वें पारे में है।

Q.2- सूरह अल-फतह कुरआन मजीद की कितने नंबर सूरह हैं?
Ans- सूरह अल-फतह कुरआन मजीद की 48 नम्बर सूरह है।

Q.3-  सूरह अल-फतह में कुल कितने आयतें हैं?
Ans- सूरह अल-फतह में कुल 29 आयतें हैं।

Q.4- सूरह अल-फतह कहां नाजील हुईं?
Ans- सूरह अल-फतह मदीना में नाजील हुईं हैं।

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