Jung e Badr Ka Waqia in Hindi । जंग ए बद्र का वाकया हिन्दी में।

प्यारे दोस्तों अस्सलाम अलैकूम। दोस्तों आज हम बताने जा रहे हैं । दो हिजरी से ही रमजान के रोजे फर्ज किए गए और रमजान की 17 तारीख को यानि 13 मार्च सन्‌ 624 को इस्लाम की पहली जंग लड़ी गई, जो की जंगे बद्र के नाम से जानी जाती है।

Jung e Badr Ka Waqia in Hindi । जंग ए बद्र का वाकया हिन्दी में।

Jung e Badr Ka Waqia in Hindi । जंग ए बद्र का वाकया हिन्दी में।

आईये , एक नज़र जंग ए बद्र पर डालते हैं : Jung e Badr


जंग ए बद्र में मुसलमानों के सामान :

सिर्फ 313 सहाबा ।
70 ऊंट
3 घोड़े
8 तलवार और
6 ज़िरह ।

लश्कर ए कुफ्फार के सामान :

1000 अफ़राद
700 ऊंट
100 घोड़े
950 तलवार और
950 ज़िरह ।

जंग ए बद्र में सहाबा एकराम की हालत :

इस्लामी लश्कर के पास खाने पीने का सामान न था ।
किसी के पास 7 तो किसी के पास 2 खजूरें थीं ।
मुसलमानों के पास एक भी ख़ेमा नहीं था ।
सहाबा एकराम ने खजूर के पत्तों और टहनीयों से एक झोंपड़ी तैयार करके हजूरे अकदस नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को उसमें ठहराया था । आज उस जगह पर मस्जिद बनी हुई है।

जंग ए बद्र में कुफ्फार की हालत :

कुफ्फार के लश्कर में खाने पीने का सामान बड़ी कसरत से था ।
रोजाना 11 ऊंट ज़बह करके खाते थे ।
कुफ्फार के लश्कर में ऐश व इशरत का सामान भी काफ़ी तादाद में था ।
जब वो किसी पानी के किनारे पड़ाव करते तो ख़ेमे लगाते थे ।
उनके साथ गाने वाली तवाइफें थी ।

Jung e badr ka Waqia । जंग ए बद्र का वाकया।

हुजूर पूरनूर नबी-ए-करीम (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) अपने 313 सहाबा एकराम (रजि.) के साथ सन् 2 हिजरी में मदीना शरीफ से बद्र के मुक़ाम पर पहुंचे । जहां कुफ्फार-ए-मक्का के साथ जंग-ए-बद्र का मशहूर वाकिया रुनुमा हुआ ।

जब आप लोग बद्र के मुक़ाम पर पहुंचे तो रात हो चुकी थी । उस वक्त अरब के क़ाइम-कर्दा-अक़ाईद के तहत ये तय पाया गया कि सुबह जंग होगी , लिहाज़ा रात भर आराम किया जाए । फिर एक जानिब मुसलमानों के लश्कर ने पड़ाव डाला जबकि दूसरी ज़ानिब कुफ्फार अपने लश्कर के साथ ठहरे । हालांकि अगर ये मालूम हो जाए कि सुबह जंग होने वाली है तो मारे खौफ के नींद कहां आएगी ।

सहाबा एकराम (रज़ि.) तो शहादत पाने की खुशी में और ज़ज़्बा-ए-इमानी से सरशार वैसे भी न सो सके । सुबह न जाने किसकी किस्मत में जाम-ए-शहादत नोश करना लिखा हो ? मगर अल्लाह त'आला ने सारे इस्लामी लश्कर को सुकून की नींद मुहैया की । इससे पहले सहाबा ए इकराम कभी ऐसी पुर-सुकून नींद न सोये थे ।

उधर अल्लाह तआला की कुदरत-ए-कामला से कुफ्फार पर रात भर खौफ तारी रहा , जिससे उनको सारी रात नींद न आई । फिर अल्लाह तआला ने मुसलमानों के दिलों में कुफ्फार के लश्कर को इंतिहाई कम कर दिया , जबकि कुफ्फार के दिलों में ये खौफ डाल दिया जैसे वो 313 न हों बल्कि 1000 हों ।

सुबह हुई । हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की इक्तिदा में सारे सहाबा इकराम (रजि.) ने नमाज़ ए फ़ज्र अदा की और नमाज़ अदा करते ही नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने सब से कहा :

अगर ऐसा हो जाए कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज़ानिब से 1000 फ़रिश्ते तुम्हे जंग में साथ दें तो कैसा रहेगा ?

यह सुनकर सहाबा इकराम (रजि.) मारे खुशी के झूम उठे । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फिर से फरमाया :

अगर 3000 फरिश्ते आ जाएं तो कैसा रहेगा ?

एक बार फिर सहाबा (रजि.) खुशी से झूम गए । फिर आखिर में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि :

अगर 5000 फ़रिश्ते आ जाये तो कैसा रहेगा ?

इतना सुनना था कि सहाबा एकराम (रजि.) बहुत खुश हुए और कहने लगे कि अगर ऐसा हो गया तो हम कुफ्फार पर बड़ी आसानी से ग़ल्बा पा जाएंगे । क़ुर्बान जाइये सरकार-ए-दो-आलम हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर , कि उस वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फरिश्ते भेजने का इरादा नहीं फरमाया था , लेकिन जब हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमा दिया तो अल्लाह तआला ने अपने हबीब के लिए फरिश्तों की फ़ौज़ भेज दी !

नोट : फरिश्तों की तादाद को लेकर अलग अलग बयान भी जारी किये गए हैं और कई अलग तादाद का जिक्र भी किया जाता रहा है ।

इधर जब जंग शुरू हुई तो अल्लाह तआला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि जाओ और असहाब ए बद्र के साथ जंग में कुफ्फार से लड़ो , और ऐसे जाना की तुम्हारे हाथो में तीर और तलवार हो , जंगी लिबास में जाना । अल्लाह तआला का हुक्म पाते ही फरिश्तों की जमात सरदार ए मलाइका हज़रत ज़िब्रिल अलेहहिस्सलाम की कियादत में असहाब ए बद्र के साथ कुफ्फार से जंग करने के लिए आ गए और ये जंग मुसलमानो ने फरिश्तों की गैबी मदद से आसानी से जीत ली । इस जंग में कुफ्फार के कई सरदार मारे गए जिससे उनके लश्कर की कमर टूट गई और बहुत से कुफ्फार को कैदी बना लिया गया ।

फिर जब कैदियों को सामने लाया गया तो नबी करीम (स.अ.व) ने सहाबा एकराम (रजि.) से पूछा कि इनके साथ क्या किया जाए । सब लोगों ने अपनी-अपनी राय दी । कुछ ने कहा कि इनको कत्ल कर दिया जाए , जबकि कुछ सहाबा ने कहा कि इनको गुलाम बना लिया जाए । मगर कुर्बान जाऊं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर । आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने ये फैसला सुनाया कि उन कैदियों से फायदा हासिल करके उन्हें आजाद कर दिया जाए । (सुभानअल्लाह) क्या बात फरमाई है आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने ? लोग उनको मारने की गरज से आते थे लेकिन आप अपनी रहमत-ए-बा-करम के सदके उन्हें छोड़ देते थे ।

जंग खत्म होने के बाद सारे फरिश्ते वापस चले गए । और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने नमाज पढ़ाई । जब आप नमाज से फारिग हुए तो एक सहाबी ने अर्ज़ किया " या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम आप नमाज के दौरान मुस्कुरा क्यों रहे थे ?" तो सरकार-ए-दो-आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मुस्कुरा कर जवाब दिया : " जब जंग के बाद जिब्रील-ए-अमीन (अलैहिस्सलाम) तमाम फरिश्तों को लेकर चले गए । तो अल्लाह तआला के हुक्म से आसमान पर फरिश्तों ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया और फ़रमाया कि तुम जिस मक़सद के लिए गए थे , उसके बिना वापस कैसे आ गए ...??" यह सुनकर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फरमाया : हम तो जंग में सहाबा की मदद करने के किये गए थे । फिर उन फरिश्तों ने जवाब दिया कि : नहीं ! तुम को मुहम्मदुर् रसुलूल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की खातिर भेज गया था , लिहाज़ा जाओ और जब तक उनसे इज़ाज़त न ले लो तबतक वापस न आना ।"

इसी वजह से जिब्रील अलैहिस्सलाम मेरे पास आये थे और उस वक़्त हम नमाज अदा कर रहे थे । मैं नमाज में बोल नहीं सकता था इसलिए मुस्कुराकर मैंने उन्हें इज़ाज़त दी , कि हां अब तुम सभी जा सकते हो । [ माशाअल्लाह ! ]

Jung E Badr Se Sabak । जंग ए बद्र से सबक

दोस्तों हमने आपको जंग ए बद्र का वाकिया आसान तरीके से बता दिया , लेकिन जंग ए बद्र का वाकिया सिर्फ सुनने या खुश होने के लिए नहीं है । बल्कि हमें इससे सीखने की जरूरत है । 

Conclusion: नतीजा

कुफ्फार के लश्कर से 70 आदमी कैद किए गए और 70 आदमी कत्ल हुए जिनमें अबू जहल भी शामिल था ।
इस्लामी लश्कर में 14 सहाबा शहीद हुए और मुसलमानों को फ़तह मिली ।

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