Janaza ki Namaz ka Tarika in Hindi । जनाजा की नमाज का तरीका हिन्दी में
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों ! आज मैं आपको नमाज़ ए जनाज़ा (Namaz e Janaza) की मालूमात देने वाला हूं । हम हर रोज़ अपने आस-पास में कई लोगों को इस दुनिया से असल दुनिया की तरफ कूच करते देखते हैं । जब किसी मुसलमान का इंतिकाल हो जाता है तो उसे गुस्ल देकर उसकी जनाज़े की नमाज (Janaze Ki Namaz) पढ़ाई जाती है फिर उसके लिए दुआ करके उसे दफन किया जाता है । लेकिन हम में से कई लोगों की नमाज-ए-जनाज़ा की तरकीब का पता नहीं होता है । इसीलिए हमने आपके साथ ये मालूमात आसान लफ्ज़ों में शेयर की है ताकि आपको समझने में कोई परेशानी न आए ।
नमाज़ ए जनाज़ा का तरीका हिन्दी में । Namaz e Janaza Ka Trika in Hindi.
जनाज़े की नमाज फर्ज़ है ? वाज़िब है या सुन्नत है ?
जनाज़े की नमाज फर्ज़ किफ़ाया है । अगर एक-दो आदमी भी पढ़ लें तो सब के जिम्मे से फर्ज़ उतर जाएगा । लेकिन अगर किसी ने भी न पढ़ी तो सब के सब गुनाहगार होंगे ।नमाज ए जनाजा की कितनी शर्तें हैं ?
नमाज ए जनाजा की पांच शर्तें हैं :
ये सारी शर्तें तो मैय्यत के लिए थीं । लेकिन जनाज़ा की नमाज पढ़ने वाले लोगों के लिए सिवाए वक्त के बाकी वही सारी शर्तें हैं जो आप दूसरी नमाजों में पढ़ते हैं ।
अब नमाज ए जनाजा की नियत करें ।
फिर इमाम जोर से और मुक्तदी धीरे से तक्बीर कहें ।
और दोनों हाथ कानों तक उठा कर नाफ के नीचे बांध लें ।
फिर धीमी आवाज में सना पढ़ें ।
- मैय्यत का मुसलमान होना
- मैय्यत का पाक होना
- उसके कफन का पाक होना
- सतर का ढका हुआ होना
- मैय्यत का नमाज पढ़ने वाले के सामने रखा हुआ होना
ये सारी शर्तें तो मैय्यत के लिए थीं । लेकिन जनाज़ा की नमाज पढ़ने वाले लोगों के लिए सिवाए वक्त के बाकी वही सारी शर्तें हैं जो आप दूसरी नमाजों में पढ़ते हैं ।
जनाज़े की नमाज (Janaze Ki Namaz) का तरीका क्या है ?
नमाज के लिए सफ बांधकर खड़े हों जाएं । अगर लोग ज्यादा हैं तो तीन या पांच या सात सफें बनाना ज्यादा अच्छा है ।अब नमाज ए जनाजा की नियत करें ।
फिर इमाम जोर से और मुक्तदी धीरे से तक्बीर कहें ।
और दोनों हाथ कानों तक उठा कर नाफ के नीचे बांध लें ।
फिर धीमी आवाज में सना पढ़ें ।
"सुबहानकल्लाहुम्मा वबि ‘हम्दिका व तबारक कस्मुका व त’आला जद्दुका व ला इलाहा ग़ैरुक"
सना में " व तआला जद्दु-क " के बाद "वजल-ल सनाऊ-क" भी कह लें तो ज्यादा अच्छा है ।
फिर हाथ उठाए बगैर इमाम जोर से और मुकतदी चुपके से दूसरी तक्बीर कहें और चुपके से दरूद शरीफ पढ़ें
"अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मदिवं व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै-त अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम्-मज़ीद । अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिवं व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक-त अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम्-मज़ीद ।"
Also Read:- दरूद शरीफ की फजीलत और बरकत
अब दूसरी तकबीर की तरह तीसरी तकबीर कहें ।
फिर मैय्यत की दुआ पढ़ें :— (नीचे दुआ बताया गया है ।)
इसके बाद इमाम जोर से और मुक्तदी धीमी आवाज में चौथी तकबीर कहें । और फिर पहले दाईं तरफ और फिर बाईं तरफ सलाम फेरे ।
"अल्लाहुम्मा मग़्फिर लि-हय्यिना व मय्यितिना व शाहिदिना व ग़ाइबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़करिना व उनसाना अल्लाहुम्मा मन अहयैतहु मिन्ना फअहयिही अलल इस्लाम व मन तवफ़्फै-तहू मिन्ना फतवफ़्फहू अलल ईमान ।"
तर्जुमा : "ऐ अल्लाह हमारे जिन्दों और मुर्दों और और जो यहां हैं और जो यहां मौजूद नहीं और छोटों और बड़ों और मर्दों और औरतों को बख्श दे । ऐ खुदा हम में से जिसे तू ज़िन्दा रख इस्लाम पर जिन्दा रख और जिसे मौत दे उसे ईमान पर मौत दे ।"
"अल्लाहुम्मज अलहू लनाफ-फरतंव वजअलहु लना अजरौं व ज़ुख़ुरौं वजअलहू लना शाफिअंव व मुशफ़-फ़आ ।"
तर्जुमा : "ऐ अल्लाह इस बच्चे को हमारी निज़ात के लिए आगे जाने वाला बना । और इसकी जुदाई की मुसीबत को हमारे लिए अज्र और ज़खीरा बना और इसको इसको हमारे गुनाहों को बख्शवाने वाला और शफाअत कुबूल किया गया बना ।"
"वजअलहू" के बदले — "वजअलहा" (दोनों जगह पर)
"शाफिअंव व मुशफ़ फआ" के बदले — "शाफिअतंव व मुशफ़ फ़ आ"
नोट : यह सिर्फ लफ्ज़ों का फर्क है माने वही रहेंगे ।
मैय्यत तक सवाब पहुंचाने के लिए कोई नेक काम करने के बाद अल्लाह तआला से दुआ करें कि "या अल्लाह इस काम का सवाब मैंने फलां आदमी को बख्शा ।" तो अल्लाह तआला उस नेक काम का सवाब मैय्यत तक पहुंचा देता है ।
सवाब पहुंचाने के लिए किसी खास चीज़ या खास वक्त या खास सूरह की अपनी तरफ से तख़सीस न करनी चाहिए (यानी यह नहीं समझना चाहिए कि फलां वक्त में या फलां चीज का ही सवाब पहुंचेगा ।) बल्कि जो चीज़ जिस वक्त अपने पास हो उसे खुदा के लिए किसी जरूरतमंद को देकर उसका सवाब मैय्यत को बख्श देना चाहिए ।
रस्म की पाबन्दी करने के लिए / दिखावे के लिए / नाम और शोहरत के लिए बड़ी बड़ी दावतें करना या कर्ज़ लेकर अपनी ताकत से ज्यादा खर्च करके रस्म पूरी करना बहुत बुरा है ।
सना में " व तआला जद्दु-क " के बाद "वजल-ल सनाऊ-क" भी कह लें तो ज्यादा अच्छा है ।
फिर हाथ उठाए बगैर इमाम जोर से और मुकतदी चुपके से दूसरी तक्बीर कहें और चुपके से दरूद शरीफ पढ़ें
"अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मदिवं व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै-त अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम्-मज़ीद । अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिवं व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक-त अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम्-मज़ीद ।"
Also Read:- दरूद शरीफ की फजीलत और बरकत
अब दूसरी तकबीर की तरह तीसरी तकबीर कहें ।
फिर मैय्यत की दुआ पढ़ें :— (नीचे दुआ बताया गया है ।)
इसके बाद इमाम जोर से और मुक्तदी धीमी आवाज में चौथी तकबीर कहें । और फिर पहले दाईं तरफ और फिर बाईं तरफ सलाम फेरे ।
बालिग मर्द या औरत के जनाज़े की नमाज की दुआ
अगर जनाज़ा बालिग मर्द या औरत का हो तो इमाम और मुक्तदी चुपके चुपके ये दुआ पढ़ें :—"अल्लाहुम्मा मग़्फिर लि-हय्यिना व मय्यितिना व शाहिदिना व ग़ाइबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़करिना व उनसाना अल्लाहुम्मा मन अहयैतहु मिन्ना फअहयिही अलल इस्लाम व मन तवफ़्फै-तहू मिन्ना फतवफ़्फहू अलल ईमान ।"
तर्जुमा : "ऐ अल्लाह हमारे जिन्दों और मुर्दों और और जो यहां हैं और जो यहां मौजूद नहीं और छोटों और बड़ों और मर्दों और औरतों को बख्श दे । ऐ खुदा हम में से जिसे तू ज़िन्दा रख इस्लाम पर जिन्दा रख और जिसे मौत दे उसे ईमान पर मौत दे ।"
नाबालिग बच्चे (लड़का) के जनाज़े की दुआ
अगर जनाज़ा नाबालिग लड़के की हो तो यह दुआ पढ़ें"अल्लाहुम्मज अलहू लनाफ-फरतंव वजअलहु लना अजरौं व ज़ुख़ुरौं वजअलहू लना शाफिअंव व मुशफ़-फ़आ ।"
तर्जुमा : "ऐ अल्लाह इस बच्चे को हमारी निज़ात के लिए आगे जाने वाला बना । और इसकी जुदाई की मुसीबत को हमारे लिए अज्र और ज़खीरा बना और इसको इसको हमारे गुनाहों को बख्शवाने वाला और शफाअत कुबूल किया गया बना ।"
नाबालिग बच्ची (लड़की) के जनाज़े की दुआ
अगर जनाज़ा नाबालिग लड़की का हो तो उस पर भी यही (उपर वाला) दुआ पढ़ें लेकिन 3 जगहों पर थोड़ा बदलाव करें ।"वजअलहू" के बदले — "वजअलहा" (दोनों जगह पर)
"शाफिअंव व मुशफ़ फआ" के बदले — "शाफिअतंव व मुशफ़ फ़ आ"
नोट : यह सिर्फ लफ्ज़ों का फर्क है माने वही रहेंगे ।
जनाज़े की नमाज से फारिग़ होकर क्या करें ?
जनाजे की नमाज से निपटते ही जनाज़े को उठाकर ले चलें । चलते वक्त अगर कलिमा पढ़ें तो दिल में पढ़ें । आवाज़ से पढ़ना मकरूह है । मैय्यत की पहली मंजिल यानी कब्र और हिसाब-किताब और दुनिया की बे एतबारी का ध्यान करें और मैय्यत के लिए गुनाहों की माफी और आसानी की दुआ करते रहें फिर कब्रिस्तान में दाखिल होकर मैय्यत को दफ़न कर दें ।मैय्यत को सवाब पहुंचाने वाले आमाल
मैय्यत को बदनी और माली इबादत का सवाब पहुंचता है । यानी जिंदा लोग अगर मैय्यत के नाम से कोई नेक काम करें तो उसका सवाब मैय्यत को पहुंचता है , जैसे :—- कुरआन शरीफ पढ़ना
- दुरूद शरीफ पढ़ना
- अल्लाह तआला के रास्ते में सदका / खैरात देना
- किसी भूखे को खाना खिलाना वगैरह !
मैय्यत तक सवाब पहुंचाने के लिए कोई नेक काम करने के बाद अल्लाह तआला से दुआ करें कि "या अल्लाह इस काम का सवाब मैंने फलां आदमी को बख्शा ।" तो अल्लाह तआला उस नेक काम का सवाब मैय्यत तक पहुंचा देता है ।
सवाब पहुंचाने के लिए किसी खास चीज़ या खास वक्त या खास सूरह की अपनी तरफ से तख़सीस न करनी चाहिए (यानी यह नहीं समझना चाहिए कि फलां वक्त में या फलां चीज का ही सवाब पहुंचेगा ।) बल्कि जो चीज़ जिस वक्त अपने पास हो उसे खुदा के लिए किसी जरूरतमंद को देकर उसका सवाब मैय्यत को बख्श देना चाहिए ।
रस्म की पाबन्दी करने के लिए / दिखावे के लिए / नाम और शोहरत के लिए बड़ी बड़ी दावतें करना या कर्ज़ लेकर अपनी ताकत से ज्यादा खर्च करके रस्म पूरी करना बहुत बुरा है ।
Jazakallah
Jazakallah
Jazakallah
माशाअल्लाह
Bahut khub mashaallha