Surah Yaseen in Hindi - सूरह यासीन हिन्दी में तर्जुमा के साथ 2024

हमारे प्यारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि तहक़ीक़ हर चीज़ का दिल है और क़ुरआन मजीद का दिल सूरह यासीन है। अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन आज हम सूरह यासीन शरीफ़ हिंदी में तर्जुमें के साथ बताने जा रहें हैं। हमें उम्मीद है आप को सूरह यासीन पढ़ने में आसानी होगी। सूरह यासीन का तर्जुमा भी सूरह यासीन के साथ लिखा हुआ है। सूरह यासीन का आईडियो फाइल भी हमने सूरह यासीन के के साथ शेयर किया है। ताकि आप लोगो सूरह यासीन Audio में सुन सके। और सूरह यासीन ( Surah Yaseen Pdf) भी है जिसे आप सेव कर के बिना इंटरनेट के कभी भी पढ़ सकते हैं । इस आर्टिकल (सूरह यासीन) को सवाब की नीयत से ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। ताकि और लोग भी सूरह यासीन को पढ़ सकें और समझ सके।
सूरह यासीन कुरान में 22 और 23 पारे में मौजूद है। और सूरह यासीन में 83 आयात, 733 अल्फ़ाज़, 5 रुकू और 2988 हुरूफ़ हैं।

Surah Yaseen in Hindi - सूरह यासीन हिन्दी में ।

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Surah Yaseen - सूरह यासीन

बिस्मिल्ला–हिर्रहमा–निर्रहीम
(शुरू अल्लाह के नाम से जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।)

(1) यासीन
(यासीन)

(2) वल कुर आनिल हकीम
(इस पुरअज़ हिकमत कु़रान की क़सम)

(3) इन्नका लमिनल मुरसलीन
(ऐ रसूल) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो)

(4) अला सिरातिम मुस्तकीम
(और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो)

(5) तनजीलल अजीज़िर रहीम
(जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (खु़दा) का नाजि़ल किया हुआ (है)

(6) लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून
(ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे खु़दा से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए)

(7) लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून
(तो वह दीन से बिल्कुल बेख़बर हैं उन में अक्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीनन बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएँगे नहीं)

(8) इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून
(हमने उनकी गर्दनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिए हैं और ठुड्डियों तक पहुँचे हुए हैं कि वह गर्दनें उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते)

(9) व जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून
(हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते)

(10) वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून
(और (ऐ रसूल) उनके लिए बराबर है ख़्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं)

(11) इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम
(तुम तो बस उसी शख़्स को डरा सकते हो जो नसीहत माने और बेदेखे भाले खु़दा का ख़ौफ़ रखे तो तुम उसको (गुनाहों की) माफी और एक बाइज़्ज़त (व आबरू) अज्र की खु़शख़बरी दे दो )

(12) इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन
(हम ही यक़ीन्न मुर्दों को जि़न्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उनको) और उनकी (अच्छी या बुरी बाक़ी माँदा) निशानियों को लिखते जाते हैं और हमने हर चीज़ का एक सरीह व रौशन पेशवा में घेर दिया है )

(13) वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसलुन
(और (ऐ रसूल) तुम (इनसे) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अता किया) वालों का कि़स्सा बयान करो जब वहाँ (हमारे) पैग़म्बर आए)

(14) इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसलुन
(इस तरह कि जब हमने उनके पास दो (पैग़म्बर योहना और यूनुस) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुठलाया जब हमने एक तीसरे (पैग़म्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मद्द दी तो इन तीनों ने कहा कि हम तुम्हारे पास खु़दा के भेजे हुए (आए) हैं)

(15) कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसलूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन
(वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही जैसे आदमी हो और खु़दा ने कुछ नाजि़ल (वाजि़ल) नहीं किया है तुम सब के सब बस बिल्कुल झूठे हो)

(16) क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसलून
(तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो)

(17) वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन
(हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे खु़दा का पहुँचा देना फज्र है)

(18) कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम
(वह बोले हमने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतेला हुए) तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रूर संगसार कर देगें और तुमको यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा)

(19) कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून
(पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शुगूनी (तुम्हारी करनी से) तुम्हारे साथ है क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे बदफ़ाली कहते हो नहीं) बल्कि तुम खु़द (अपनी) हद से बढ़ गए हो)
(20) व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन
(और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख़्स (हबीब नज्जार) दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो)

(21) इत तबिऊ मल ला यस अलुकुम अजरौ वहुम मुहतदून
(ऐसे लोगों का (ज़रूर) कहना मानो जो तुमसे (तबलीख़े रिसालत की) कुछ मज़दूरी नहीं माँगते और वह लोग हिदायत याफ्ता भी हैं)

(22) वमालिया ला अअ’बुदुल लज़ी फतरनी व इलैहि तुरजऊन
(और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उसकी इबादत न करूँ हालाँकि तुम सब के बस (आखि़र) उसी की तरफ लौटकर जाओगे)
(23) अ अत्तखिज़ु मिन दुनिही आलिहतन इय युरिदनिर रहमानु बिजुर रिल ला तुगनि अन्नी शफ़ा अतुहुम शय अव वला यूनकिजून
(क्या मैं उसे छोड़कर दूसरों को माबूद बना लूँ अगर खु़दा मुझे कोई तकलीफ पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (इस मुसीबत से) छुड़ा ही सकेंगें)

(24) इन्नी इज़ल लफी ज़लालिम मुबीन
(अगर ऐसा करूँ) तो उस वक़्त मैं यक़ीनी सरीही गुमराही में हूँ)
(25) इन्नी आमन्तु बिरब बिकुम फसमऊन
(मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो ;मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डाला)

(26) कीलद खुलिल जन्नह काल यालैत क़ौमिय यअ’लमून
(तब उसे खु़दा का हुक्म हुआ कि बेहिश्त में जा (उस वक़्त भी उसको क़ौम का ख़्याल आया तो कहा)

(27) बिमा गफरली रब्बी व जअलनी मिनल मुकरमीन
(मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख़्श दिया और मुझे बुज़ुर्ग लोगों में शामिल कर दिया काश इसको मेरी क़ौम के लोग जान लेते और ईमान लाते)
(28) वमा अन्ज़लना अला क़ौमिही मिन बअ’दिही मिन जुन्दिम मिनस समाइ वमा कुन्ना मुनजलीन
(और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए न तो आसमान से कोई लशकर उतारा और न हम कभी इतनी सी बात के वास्ते लशकर उतारने वाले थे )

(29) इन कानत इल्ला सैहतौ वाहिदतन फइज़ा हुम् खामिदून
(वह तो सिर्फ एक चिंघाड थी (जो कर दी गयी बस) फिर तो वह फौरन चिराग़े सहरी की तरह बुझ के रह गए)

(30) या हसरतन अलल इबाद मा यअ’तीहिम मिर रसूलिन इल्ला कानू बिही यस तहज़िउन
(हाए अफसोस बन्दों के हाल पर कि कभी उनके पास कोई रसूल नहीं आया मगर उन लोगों ने उसके साथ मसख़रापन ज़रूर किया)
(31) अलम यरौ कम अहलकना क़ब्लहुम मिनल कुरूनि अन्नहुम इलैहिम ला यर जिउन
(क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला और वह लोग उनके पास हरगिज़ पलट कर नहीं आ सकते)

(32) वइन कुल्लुल लम्मा जमीउल लदैना मुह्ज़रून
(हाँ) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा हो कर हमारी बारगाह में हाजि़र किए जाएँगे)

(33) व आयतुल लहुमूल अरज़ुल मैतह अह ययनाहा व अखरजना मिन्हा हब्बन फमिनहु यअ कुलून
(और उनके (समझने) के लिए मेरी कु़दरत की एक निशानी मुर्दा (परती) ज़मीन है कि हमने उसको (पानी से) जि़न्दा कर दिया और हम ही ने उससे दाना निकाला तो उसे ये लोग खाया करते हैं)
(34) व जअलना फीहा जन्नातिम मिन नखीलिव व अअ’नाबिव व फज्जरना फीहा मिनल उयून
(और हम ही ने ज़मीन में छुहारों और अँगूरों के बाग़ लगाए और हमही ने उसमें पानी के चशमें जारी किए )

(35) लियअ’ कुलु मिन समरिही वमा अमिलत हु अयदीहिम अफला यशकुरून
(ताकि लोग उनके फल खाएँ और कुछ उनके हाथों ने उसे नहीं बनाया (बल्कि खु़दा ने) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते)

(36) सुब्हानल लज़ी ख़लक़ल अज़वाज कुल्लहा मिम मा तुमबितुल अरज़ू वमिन अनफुसिहिम वमिम मा ला यअलमून
(वह (हर ऐब से) पाक साफ है जिसने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और खु़द उन लोगों के और उन चीज़ों के जिनकी उन्हें ख़बर नहीं सबके जोड़े पैदा किए)

(37) व आयतुल लहुमूल लैल नसलखु मिन्हुन नहारा फइज़ा हुम् मुजलिमून
(और मेरी क़ुदरत की एक निशानी रात है जिससे हम दिन को खींच कर निकाल लेते (जाएल कर देते) हैं तो उस वक़्त ये लोग अँधेरे में रह जाते हैं)
(38) वश शमसु तजरि लिमुस्त कररिल लहा ज़ालिका तक़्दी रूल अज़ीज़िल अलीम
(और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ये (सबसे) ग़ालिब वाकि़फ (खु़दा) का (वाधा हुआ) अन्दाज़ा है)

(39) वल कमर कद्दरनाहु मनाज़िला हत्ता आद कल उरजुनिल क़दीम
(और हमने चाँद के लिए मंजि़लें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आखि़र माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है)

(40) लश शम्सु यमबगी लहा अन तुद रिकल कमरा वलल लैलु साबिकुन नहार वकुल्लुन फी फलकिय यसबहून
(न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद, सूरज, सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं)
(41) व आयतुल लहुम अन्ना हमलना ज़ुररिय यतहूम फिल फुल्किल मशहून
(और उनके लिए (मेरी कु़दरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुज़ुर्गों को (नूह की) भरी हुयी कश्ती में सवार किया)

(42) व खलकना लहुम मिम मिस्लिही मा यरकबून
(और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कश्तियाँ) जहाज़ पैदा कर दी)

(43) व इन नशअ नुगरिक हुम फला सरीखा लहुम वाला हुम युन्क़जून
(जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं)
(44) इल्ला रहमतम मिन्ना व मताअन इलाहीन
(मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक़्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है)

(45) व इजा कीला लहुमुत तकू मा बैना ऐदीकुम वमा खल्फकुम लअल्लकुम तुरहमून
(और जब उन कुफ़्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक़्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए)

(46) वमा तअ’तीहिम मिन आयतिम मिन आयाति रब्बिहिम इल्ला कानू अन्हा मुअ रिजीन
(तो परवाह नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे)
(47) व इज़ा कीला लहुम अन्फिकू मिम्मा रजका कुमुल लाहु क़ालल लज़ीना कफरू लिल लज़ीना आमनू अनुत इमू मल लौ यशाऊल लाहू अत अमह इन अन्तुम इल्ला फ़ी ज़लालिम मुबीन
(और जब उन (कुफ़्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खु़दा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खु़दा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ़्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख़्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख़्याल के मुवाफि़क़) खु़दा चाहता तो उसको खु़द खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो)

(48) व यकूलूना मता हाज़ल व’अदू इन कुनतुम सादिक़ीन
(और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग (अपने दावे में सच्चे हो) तो आखि़र ये (क़यामत का) वायदा कब पूरा होगा)

(49) मा यन ज़ुरूना इल्ला सैहतव व़ाहिदतन तअ खुज़ुहुम वहुम यखिस सिमून
(ऐ रसूल) ये लोग एक सख़्त चिंघाड़ (सूर) के मुनतजि़र हैं जो उन्हें (उस वक़्त) ले डालेगी)

(50) फला यस्ता तीऊना तौ सियतव वला इला अहलिहिम यरजिऊन
(जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होगें फिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पायेंगे और न अपने लड़के बालों ही की तरफ लौट कर जा सकेगें)

(51) व नुफ़िखा फिस सूरि फ़इज़ा हुम मिनल अज्दासि इला रब्बिहिम यन्सिलून
(और फिर (जब दोबारा) सूर फूँका जाएगा तो उसी दम ये सब लोग (अपनी-अपनी) क़ब्रों से (निकल-निकल के) अपने परवरदिगार की बारगाह की तरफ चल खड़े होगे)
(52) कालू या वय्लना मम ब असना मिम मरक़दिना हाज़ा मा व अदर रहमानु व सदकल मुरसलून
(और (हैरान होकर) कहेगें हाए अफसोस हम तो पहले सो रहे थे हमें ख़्वाबगाह से किसने उठाया (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिसका खु़दा ने (भी) वायदा किया था)

(53)इन कानत इल्ला सयहतव वहिदतन फ़ इज़ा हुम जमीउल लदैना मुहज़रून
(और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख़्त चिंघाड़ होगी फिर एका एकी ये लोग सब के सब हमारे हुजू़र में हाजि़र किए जाएँगे)

(54) फल यौम ला तुज्लमु नफ्सून शय अव वला तुज्ज़व्ना इल्ला बिमा कुंतुम तअ’लमून
(फिर आज (क़यामत के दिन) किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते थे)

(55) इन्न अस हाबल जन्न्तिल यौमा फ़ी शुगुलिन फाकिहून
(बेहश्त के रहने वाले आज (रोजे़ क़यामत) एक न एक मशग़ले में जी बहला रहे हैं)

(56) हुम व अज्वा जुहूम फ़ी ज़िलालिन अलल अराइकि मुत्तकिऊन
(वह अपनी बीवियों के साथ (ठन्डी) छाँव में तकिया लगाए तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं)

(57) लहुम फ़ीहा फाकिहतुव वलहुम मा यद् दऊन
(बहिश्त में उनके लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार) हैं और जो वह चाहें उनके लिए (हाजि़र) है)

(58) सलामुन कौलम मिर रब्बिर रहीम
(मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम का पैग़ाम आएगा)

(59) वम ताज़ुल यौमा अय्युहल मुजरिमून
(और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (इनसे) अलग हो जाओ )
(60) अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन
(ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है)

(61) व अनिअ बुदूनी हज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम
(और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है)

(62) व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून
(और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे)

(63) हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून
(ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था)

(64) इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून
(तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ)

(65) अल यौमा नाख्तिमु अल अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून
(आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खु़द उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें)

(66) व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून
(और अगर हम चाहें तो उनकी आँखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे )

(67) व लौ नशाउ ल मसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन
(और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें)

(68) वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून
(और हम जिस शख़्स को (बहुत) ज़्यादा उम्र देते हैं तो उसे खि़लक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं)

(69) वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन
(और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कु़रान है)

(70) लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन
(ताकि जो जि़न्दा (दिल आकि़ल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफि़रों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे)

(71) अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून
(क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए)

(72) व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून
(और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं)

(73) व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून
(और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते )

(74) वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून
(और लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर (फ़र्ज़ी माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मदद मिले हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मदद कर ही नहीं सकते)

(75) ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून
(और ये कुफ़्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाजि़री ली जाएगी)
(76) फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून
(तो (ऐ रसूल) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं)

(77) अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खासीमुम मुबीन
(क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे़ से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है)

(78) व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम
(और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी खि़लक़त (की हालत) भूल गया और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियाँ (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) जि़न्दा कर सकता है)

(79) कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उसको वही जि़न्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार जि़न्दा कर (रखा)

(80) अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून
(और वह हर तरह की पैदाइश से वाकि़फ है जिसने तुम्हारे वास्ते (मिखऱ् और अफ़ार के) हरे दरख़्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो)

(81) अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला य यख्लुक़ा मिस्लहुम बला वहुवल खल्लाकुल अलीम
(भला) जिस (खु़दा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाकि़फ़कार है)

(82) इन्नमा अमरुहू इज़ा अरादा शय अन अय यकूला लहू कुन फयकून
(उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि “हो जा” तो (फौरन) हो जाती है)

(83) फसुब हानल लज़ी बियदिही मलकूतु कुल्ली शय इव व इलैहि तुरज उन
(तो वह ख़ुद (हर नफ़्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कु़दरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे)


Surah Yaseen English and Arabic

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
(Bismillaahir Rahmaanir Raheem)

یٰسٓۚ(۱)
(Yaa-Seeen)

وَ الْقُرْاٰنِ الْحَكِیْمِۙ(۲)
(Wal-Qur-aanil-Hakeem)

اِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِیْنَۙ(۳)
(Innaka laminal mursaleen)

عَلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِیْمٍؕ(٤)
(Alaa Siraatim Mustaqeem)

تَنْزِیْلَ الْعَزِیْزِ الرَّحِیْمِۙ(۵)
(Tanzeelal ‘Azeezir Raheem)

لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَّاۤ اُنْذِرَ اٰبَآؤُهُمْ فَهُمْ غٰفِلُوْنَ(٦)
(Litunzira qawmam maaa unzira aabaaa’uhum fahum ghaafiloon)

لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلٰۤى اَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ(۷)
(Laqad haqqal qawlu ‘alaaa aksarihim fahum laa yu’minoon)

اِنَّا جَعَلْنَا فِیْۤ اَعْنَاقِهِمْ اَغْلٰلًا فَهِیَ اِلَى الْاَذْقَانِ فَهُمْ مُّقْمَحُوْنَ(۸)
(Innaa ja’alnaa feee a’naaqihim aghlaalan fahiya ilal azqaani fahum muqmahoon)

وَ جَعَلْنَا مِنْۢ بَیْنِ اَیْدِیْهِمْ سَدًّا وَّ مِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَاَغْشَیْنٰهُمْ فَهُمْ
لَا یُبْصِرُوْنَ(۹)
(Wa ja’alnaa mim baini aydeehim saddanw-wa min khalfihim saddan fa ag shai naahum fahum laa yubsiroon)

وَ سَوَآءٌ عَلَیْهِمْ ءَاَنْذَرْتَهُمْ اَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ(۱۰)
(Wa sawaaa’un ‘alaihim ‘a-anzartahum am lam tunzirhum laa yu’minoon)

اِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَ خَشِیَ الرَّحْمٰنَ بِالْغَیْبِۚ-فَبَشِّرْهُ
بِمَغْفِرَةٍ وَّ اَجْرٍ كَرِیْمٍ(۱۱)
(Innamaa tunziru manit taba ‘az-Zikra wa khashiyar Rahmaana bilghaib, fabashshirhu bimaghfiratinw-wa ajrin kareem)

اِنَّا نَحْنُ نُحْیِ الْمَوْتٰى وَ نَكْتُبُ مَا قَدَّمُوْا وَ اٰثَارَهُمْۣؕ-وَ كُلَّ شَیْءٍ اَحْصَیْنٰهُ فِیْۤ اِمَامٍ مُّبِیْنٍ۠(۱۲)
(Innaa Nahnu nuhyil mawtaa wa naktubu maa qaddamoo wa aasaarahum; wa kulla shai’in ahsainaahu feee Imaamim Mubeen)

وَ اضْرِبْ لَهُمْ مَّثَلًا اَصْحٰبَ الْقَرْیَةِۘ-اِذْ جَآءَهَا الْمُرْسَلُوْنَۚ(۱۳)
(Wazrib lahum masalan As haabal Qaryatih; iz jaaa’ahal mursaloon)

اِذْ اَرْسَلْنَاۤ اِلَیْهِمُ اثْنَیْنِ فَكَذَّبُوْهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوْۤا اِنَّاۤ اِلَیْكُمْ مُّرْسَلُوْنَ(۱٤)
(Iz arsalnaaa ilaihimusnaini fakazzaboohumaa fa’azzaznaa bisaalisin faqaalooo innaaa ilaikum mursaloon)

قَالُوْا مَاۤ اَنْتُمْ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَاۙ-وَ مَاۤ اَنْزَلَ الرَّحْمٰنُ مِنْ شَیْءٍۙ-اِنْ اَنْتُمْ اِلَّا تَكْذِبُوْنَ(۱۵)
(Qaaloo maaa antum illaa basharum mislunaa wa maaa anzalar Rahmaanu min shai’in in antum illaa takziboon)

قَالُوْا رَبُّنَا یَعْلَمُ اِنَّاۤ اِلَیْكُمْ لَمُرْسَلُوْنَ(۱٦)
(Qaaloo Rabbunaa ya’lamu innaaa ilaikum lamursaloon)

وَ مَا عَلَیْنَاۤ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِیْنُ(۱۷)
(Wa maa ‘alainaaa illal balaaghul mubeen)

قَالُوْۤا اِنَّا تَطَیَّرْنَا بِكُمْۚ-لَىٕنْ لَّمْ تَنْتَهُوْا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَ لَیَمَسَّنَّكُمْ مِّنَّا
عَذَابٌ اَلِیْمٌ(۱۸)
(Qaaloo innaa tataiyarnaa bikum la’il-lam tantahoo lanar jumannakum wa la-yamassan nakum minnaa ‘azaabun aleem)

قَالُوْا طَآىٕرُكُمْ مَّعَكُمْؕ-اَىٕنْ ذُكِّرْتُمْؕ-بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُوْنَ(۱۹)
(Qaaloo taaa’irukum ma’akum; a’in zukkirtum; bal antum qawmum musrifoon)

وَ جَآءَ مِنْ اَقْصَا الْمَدِیْنَةِ رَجُلٌ یَّسْعٰى قَالَ یٰقَوْمِ اتَّبِعُوا
الْمُرْسَلِیْنَۙ(۲۰)
(Wa jaaa’a min aqsal madeenati rajuluny yas’aa qaala yaa qawmit tabi’ul mursaleen)

اتَّبِعُوْا مَنْ لَّا یَسْــٴَـلُكُمْ اَجْرًا وَّ هُمْ مُّهْتَدُوْنَ(۲۱)
(Ittabi’oo mal-laa yas’alukum ajranw-wa hum muhtadoon)

وَ مَا لِیَ لَاۤ اَعْبُدُ الَّذِیْ فَطَرَنِیْ وَ اِلَیْهِ تُرْجَعُوْنَ(۲۲)
(Wa maa liya laaa a’budul lazee fataranee wa ilaihi turja’oon)

ءَاَتَّخِذُ مِنْ دُوْنِهٖۤ اٰلِهَةً اِنْ یُّرِدْنِ الرَّحْمٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّیْ شَفَاعَتُهُمْ شَیْــٴًـا وَّ لَا یُنْقِذُوْنِۚ(۲۳)
(A-attakhizu min dooniheee aalihatan iny-yuridnir Rahmaanu bidurril-laa tughni ‘annee shafaa ‘atuhum shai ‘anw-wa laa yunqizoon)

اِنِّیْۤ اِذًا لَّفِیْ ضَلٰلٍ مُّبِیْنٍ(۲٤)
(Inneee izal-lafee dalaa-lim-mubeen)

اِنِّیْۤ اٰمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُوْنِؕ(۲۵)
(Inneee aamantu bi Rabbikum fasma’oon)

قِیْلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَؕ-قَالَ یٰلَیْتَ قَوْمِیْ یَعْلَمُوْنَۙ(۲٦)
(Qeelad khulil Jannnah; qaala yaa laita qawmee ya’lamoon)

بِمَا غَفَرَ لِیْ رَبِّیْ وَ جَعَلَنِیْ مِنَ الْمُكْرَمِیْنَ(۲۷)
(Bimaa ghafara lee Rabbee wa ja’alanee minal mukrameen (End Juz 22)

وَ مَاۤ اَنْزَلْنَا عَلٰى قَوْمِهٖ مِنْۢ بَعْدِهٖ مِنْ جُنْدٍ مِّنَ السَّمَآءِ وَ مَا كُنَّا مُنْزِلِیْنَ(۲۸)
(Wa maaa anzalnaa ‘alaa qawmihee mim ba’dihee min jundim minas-samaaa’i wa maa kunnaa munzileen)

اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ خٰمِدُوْنَ(۲۹)
(In kaanat illaa saihatanw waahidatan fa-izaa hum khaamidoon)

یٰحَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِۣۚ-مَا یَاْتِیْهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ یَسْتَهْزِءُوْنَ(۳۰)
(Yaa hasratan ‘alal ‘ibaaad; maa ya’teehim mir Rasoolin illaa kaanoo bihee yastahzi ‘oon)

اَلَمْ یَرَوْا كَمْ اَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِّنَ الْقُرُوْنِ اَنَّهُمْ اِلَیْهِمْ لَا یَرْجِعُوْنَؕ(۳۱)
(Alam yaraw kam ahlak naa qablahum minal qurooni annahum ilaihim laa yarji’oon)

وَ اِنْ كُلٌّ لَّمَّا جَمِیْعٌ لَّدَیْنَا مُحْضَرُوْنَ۠(۳۲)
(Wa in kullul lammaa jamee’ul-ladainaa muhzaroon)

وَ اٰیَةٌ لَّهُمُ الْاَرْضُ الْمَیْتَةُ ۚۖ-اَحْیَیْنٰهَا وَ اَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ یَاْكُلُوْنَ(۳۳)
(Wa Aayatul lahumul ardul maitatu ahyainaahaa wa akhrajnaa minhaa habban faminhu ya’kuloon)

وَ جَعَلْنَا فِیْهَا جَنّٰتٍ مِّنْ نَّخِیْلٍ وَّ اَعْنَابٍ وَّ فَجَّرْنَا فِیْهَا مِنَ الْعُیُوْنِۙ(۳٤)
(Wa ja’alnaa feehaa jannaatim min nakheelinw wa a’naabinw wa fajjarnaa feeha minal ‘uyoon)

لِیَاْكُلُوْا مِنْ ثَمَرِهٖۙ-وَ مَا عَمِلَتْهُ اَیْدِیْهِمْؕ-اَفَلَا یَشْكُرُوْنَ(۳۵)
(Li ya’kuloo min samarihee wa maa ‘amilat-hu aideehim; afalaa yashkuroon)

سُبْحٰنَ الَّذِیْ خَلَقَ الْاَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْۢبِتُ الْاَرْضُ وَ مِنْ اَنْفُسِهِمْ وَ مِمَّا لَا یَعْلَمُوْنَ(۳٦)
(Subhaanal lazee khalaqal azwaaja kullahaa mimmaa tumbitul ardu wa min anfusihim wa mimmaa laa ya’lamoon)

وَ اٰیَةٌ لَّهُمُ الَّیْلُ ۚۖ-نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَاِذَا هُمْ مُّظْلِمُوْنَۙ(۳۷)
(Wa Aayatul lahumul lailu naslakhu minhun nahaara fa-izaa hum muzlimoon)

وَ الشَّمْسُ تَجْرِیْ لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَاؕ-ذٰلِكَ تَقْدِیْرُ الْعَزِیْزِ الْعَلِیْمِؕ(۳۸)
(Wash-shamsu tajree limustaqarril lahaa; zaalika taqdeerul ‘Azeezil Aleem)

وَ الْقَمَرَ قَدَّرْنٰهُ مَنَازِلَ حَتّٰى عَادَ كَالْعُرْجُوْنِ الْقَدِیْمِ(۳۹)
(Walqamara qaddarnaahu manaazila hattaa ‘aada kal’ur joonil qadeem)

لَا الشَّمْسُ یَنْۢبَغِیْ لَهَاۤ اَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَ لَا الَّیْلُ سَابِقُ النَّهَارِؕ-وَ كُلٌّ فِیْ فَلَكٍ یَّسْبَحُوْنَ(٤۰)
(Lash shamsu yambaghee lahaaa an tudrikal qamara walal lailu saabiqun nahaar; wa kullun fee falaki yasbahoon)

وَ اٰیَةٌ لَّهُمْ اَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّیَّتَهُمْ فِی الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِۙ(٤۱)
(Wa Aayatul lahum annaa hamalnaa zurriyatahum fil fulkil mashhoon)

وَ خَلَقْنَا لَهُمْ مِّنْ مِّثْلِهٖ مَا یَرْكَبُوْنَ(٤۲)
(Wa khalaqnaa lahum mim-mislihee maa yarkaboon)

وَ اِنْ نَّشَاْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِیْخَ لَهُمْ وَ لَا هُمْ یُنْقَذُوْنَۙ(٤۳)
(Wa in nashaa nughriqhum falaa sareekha lahum wa laa hum yunqazoon)

اِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَ مَتَاعًا اِلٰى حِیْنٍ(٤٤)
(Illaa rahmatam minnaa wa mataa’an ilaa heen)

وَ اِذَا قِیْلَ لَهُمُ اتَّقُوْا مَا بَیْنَ اَیْدِیْكُمْ وَ مَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ(٤۵)
(Wa izaa qeela lahumuttaqoo maa baina aideekum wa maa khalfakum la’allakum turhamoon)

وَ مَا تَاْتِیْهِمْ مِّنْ اٰیَةٍ مِّنْ اٰیٰتِ رَبِّهِمْ اِلَّا كَانُوْا عَنْهَا مُعْرِضِیْنَ(٤٦)
(Wa maa ta’teehim min aayatim min Aayaati Rabbihim illaa kaanoo ‘anhaa mua’rizeen)

وَ اِذَا قِیْلَ لَهُمْ اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُۙ-قَالَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنُطْعِمُ مَنْ لَّوْ یَشَآءُ اللّٰهُ اَطْعَمَهٗۤ ﳓ اِنْ اَنْتُمْ اِلَّا فِیْ ضَلٰلٍ مُّبِیْنٍ(٤٧)
(Wa izaa qeela lahum anfiqoo mimmaa razaqakumul laahu qaalal lazeena kafaroo lillazeena aamanooo anut’imu mal-law yashaaa’ul laahu at’amahooo in antum illaa fee dalaalim mubeen)

وَ یَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ(٤۸)
(Wa yaqooloona mataa haazal wa’du in kuntum saadiqeen)

مَا یَنْظُرُوْنَ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً تَاْخُذُهُمْ وَ هُمْ یَخِصِّمُوْنَ(٤۹)
(Maa yanzuroona illaa saihatanw waahidatan ta’khuzuhum wa hum yakhissimoon)

فَلَا یَسْتَطِیْعُوْنَ تَوْصِیَةً وَّ لَاۤ اِلٰۤى اَهْلِهِمْ یَرْجِعُوْنَ۠(۵۰)
(Falaa yastatee’oona taw siyatanw-wa laaa ilaaa ahlihim yarji’oon)

وَ نُفِخَ فِی الصُّوْرِ فَاِذَا هُمْ مِّنَ الْاَجْدَاثِ اِلٰى رَبِّهِمْ یَنْسِلُوْنَ(۵۱)
(Wa nufikha fis-soori faizaa hum minal ajdaasi ilaa Rabbihim yansiloon)

قَالُوْا یٰوَیْلَنَا مَنْۢ بَعَثَنَا مِنْ مَّرْقَدِنَاﱃ هٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمٰنُ وَ صَدَقَ الْمُرْسَلُوْنَ(۵۲)
(Qaaloo yaa wailanaa mam ba’asanaa mim marqadinaa; haaza maa wa’adar Rahmanu wa sadaqal mursaloon)

اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ جَمِیْعٌ لَّدَیْنَا مُحْضَرُوْنَ(۵۳)
(In kaanat illaa saihatanw waahidatan fa-izaa hum jamee’ul ladainaa muhzaroon)

فَالْیَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَیْــٴًـا وَّ لَا تُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ(۵٤)
(Fal-Yawma laa tuzlamu nafsun shai’anw-wa laa tujzawna illaa maa kuntum ta’maloon)

اِنَّ اَصْحٰبَ الْجَنَّةِ الْیَوْمَ فِیْ شُغُلٍ فٰكِهُوْنَۚ(۵۵)
(Inna Ashaabal jannatil Yawma fee shughulin faakihoon)

هُمْ وَ اَزْوَاجُهُمْ فِیْ ظِلٰلٍ عَلَى الْاَرَآىٕكِ مُتَّكِــٴُـوْنَ (۵٦)
(Hum wa azwaajuhum fee zilaalin ‘alal araaa’iki muttaki’oon)

لَهُمْ فِیْهَا فَاكِهَةٌ وَّ لَهُمْ مَّا یَدَّعُوْنَۚۖ(۵۷)
(Lahum feehaa faakiha tunw-wa lahum maa yadda’oon)

سَلٰمٌ قَوْلًا مِّنْ رَّبٍّ رَّحِیْمٍ(۵۸)
(Salaamun qawlam mir Rabbir Raheem)

وَ امْتَازُوا الْیَوْمَ اَیُّهَا الْمُجْرِمُوْنَ(۵۹)
(Wamtaazul Yawma ayyuhal mujrimoon)

اَلَمْ اَعْهَدْ اِلَیْكُمْ یٰبَنِیْۤ اٰدَمَ اَنْ لَّا تَعْبُدُوا الشَّیْطٰنَۚ-اِنَّهٗ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِیْنٌۙ(٦۰)
(Alam a’had ilaikum yaa Baneee Aadama al-laa ta’budush Shaitaana innahoo lakum ‘aduwwum mubeen)

وَّ اَنِ اعْبُدُوْنِیْﳳ-هٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِیْمٌ(٦۱)
(Wa ani’budoonee; haazaa Siraatum Mustaqeem)

وَ لَقَدْ اَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِیْرًاؕ-اَفَلَمْ تَكُوْنُوْا تَعْقِلُوْنَ(٦۲)
(Wa laqad adalla minkum jibillan kaseeraa; afalam takoonoo ta’qiloon)

هٰذِهٖ جَهَنَّمُ الَّتِیْ كُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ(٦۳)
(Haazihee Jahannamul latee kuntum too’adoon)

اِصْلَوْهَا الْیَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ(٦٤)
(Islawhal Yawma bimaa kuntum takfuroon)

اَلْیَوْمَ نَخْتِمُ عَلٰۤى اَفْوَاهِهِمْ وَ تُكَلِّمُنَاۤ اَیْدِیْهِمْ وَ تَشْهَدُ اَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ(٦۵)
(Al-Yawma nakhtimu ‘alaaa afwaahihim wa tukallimunaaa aideehim wa tashhadu arjuluhum bimaa kaanoo yaksiboon)

وَ لَوْ نَشَآءُ لَطَمَسْنَا عَلٰۤى اَعْیُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَاَنّٰى یُبْصِرُوْنَ(٦٦)
(Wa law nashaaa’u lata masna ‘alaaa aiyunihim fasta baqus-siraata fa-annaa yubsiroon)

وَ لَوْ نَشَآءُ لَمَسَخْنٰهُمْ عَلٰى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوْا مُضِیًّا وَّ لَا یَرْجِعُوْنَ۠(٦۷)
(Wa law nashaaa’u lamasakhnaahum ‘alaa makaanatihim famas-tataa’oo mudiyyanw-wa laa yarji’oon)

وَ مَنْ نُّعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِی الْخَلْقِؕ-اَفَلَا یَعْقِلُوْنَ(٦۸)
(Wa man nu ‘ammirhu nunakkishu fil-khalq; afalaa ya’qiloon)

وَ مَا عَلَّمْنٰهُ الشِّعْرَ وَ مَا یَنْۢبَغِیْ لَهٗؕ-اِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ وَّ قُرْاٰنٌ مُّبِیْنٌۙ(٦۹)
(Wa maa ‘allamnaahush shi’ra wa maa yambaghee lah; in huwa illaa zikrunw-wa Qur-aanum mubeen)

لِّیُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَیًّا وَّ یَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكٰفِرِیْنَ(۷۰)
(Liyunzira man kaana haiyanw-wa yahiqqal qawlu ‘alal-kaafireen)

اَوَ لَمْ یَرَوْا اَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِّمَّا عَمِلَتْ اَیْدِیْنَاۤ اَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مٰلِكُوْنَ(۷۱)
(Awalam yaraw annaa khalaqnaa lahum mimmaa ‘amilat aideenaaa an’aaman fahum lahaa maalikoon)

وَ ذَلَّلْنٰهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوْبُهُمْ وَ مِنْهَا یَاْكُلُوْنَ(۷۲)
(Wa zallalnaahaa lahum faminhaa rakoobuhum wa minhaa ya’kuloon)

وَ لَهُمْ فِیْهَا مَنَافِعُ وَ مَشَارِبُؕ-اَفَلَا یَشْكُرُوْنَ(۷۳)
(Wa lahum feehaa manaa fi’u wa mashaarib; afalaa yashkuroon)

وَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اٰلِهَةً لَّعَلَّهُمْ یُنْصَرُوْنَؕ(۷٤)
(Wattakhazoo min doonil laahi aalihatal la’allahum yunsaroon)

لَا یَسْتَطِیْعُوْنَ نَصْرَهُمْۙ-وَ هُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُّحْضَرُوْنَ(۷۵)
(Laa yastatee’oona nasrahum wa hum lahum jundum muhdaroon)

فَلَا یَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْۘ-اِنَّا نَعْلَمُ مَا یُسِرُّوْنَ وَ مَا یُعْلِنُوْنَ(۷٦)
(Falaa yahzunka qawluhum; innaa na’lamu maa yusirroona wa maa yu’linoon)

اَوَ لَمْ یَرَ الْاِنْسَانُ اَنَّا خَلَقْنٰهُ مِنْ نُّطْفَةٍ فَاِذَا هُوَ خَصِیْمٌ مُّبِیْنٌ(۷۷)
(Awalam yaral insaanu annaa khalaqnaahu min nutfatin fa-izaa huwa khaseemum mubeen)

وَ ضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَّ نَسِیَ خَلْقَهٗؕ-قَالَ مَنْ یُّحْیِ الْعِظَامَ وَ هِیَ رَمِیْمٌ(۷۸)
(Wa zaraba lanaa maslanw-wa nasiya khalqahoo qaala mai-yuhyil’izaama wa hiya rameem)

قُلْ یُحْیِیْهَا الَّذِیْۤ اَنْشَاَهَاۤ اَوَّلَ مَرَّةٍؕ-وَ هُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِیْمُۙ (۷۹)
(Qul yuh yeehal lazeee ansha ahaaa awwala marrah; wa Huwa bikulli khalqin ‘Aleem)

الَّذِیْ جَعَلَ لَكُمْ مِّنَ الشَّجَرِ الْاَخْضَرِ نَارًا فَاِذَاۤ اَنْتُمْ مِّنْهُ تُوْقِدُوْنَ(۸۰)
(Allazee ja’ala lakum minash shajaril akhdari naaran fa-izaaa antum minhu tooqidoon)

اَوَ لَیْسَ الَّذِیْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضَ بِقٰدِرٍ عَلٰۤى اَنْ یَّخْلُقَ مِثْلَهُمْ بَلٰىۗ وَ هُوَالْخَلّٰقُ الْعَلِیْمُ(۸۱)
(Awa laisal lazee khalaqas samaawaati wal arda biqaadirin ‘alaaa ai-yakhluqa mislahum; balaa wa Huwal Khallaaqul ‘Aleem)

اِنَّمَاۤ اَمْرُهٗۤ اِذَاۤ اَرَادَ شَیْــٴًـا اَنْ یَّقُوْلَ لَهٗ كُنْ فَیَكُوْنُ(۸۲)
(Innamaa amruhooo izaaa araada shai’an ai-yaqoola lahoo kun fa-yakoon)

فَسُبْحٰنَ الَّذِیْ بِیَدِهٖ مَلَكُوْتُ كُلِّ شَیْءٍ وَّ اِلَیْهِ تُرْجَعُوْنَ۠(۸۳)
(Fa Subhaanal lazee biyadihee malakootu kulli shai-inw-wa ilaihi turja’oon)

Conclusion

दोस्तों सूरह यासीन हिंदी में तर्जुमा के साथ पढ़े। हमे आशा है की आपकों पढ़ने और समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई होगी। ऐसे ही और सूरह या दुआ पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे। Islamicwaqia.com
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36 Comments
  • Anonymous
    Anonymous November 13, 2023 at 7:39 AM

    माशाअल्लाह

    • Anonymous
      Anonymous February 25, 2024 at 9:49 PM

      Bahut achhe se samjha ne ki kosis ki aapne masha allah ❤️🤲

    • Anonymous
      Anonymous March 22, 2024 at 5:27 AM

      Masaallah

    • Anonymous
      Anonymous March 22, 2024 at 5:27 AM

      Masaallah

    • Anonymous
      Anonymous April 4, 2024 at 3:00 AM

      Assalamualaikum wa rahmatullah barkatahu
      Ummed hai aap log khairiyat se Hoge mujhe bhi aap Islamic group me shamil kare aap ka post padhne ke Baad dil aur dimag se confused out off mind aur Dil mutmaeen ho gya Masha Allah allah aap logo kamyabi at kare . Allah hafiz

  • Jamshed
    Jamshed December 21, 2023 at 1:00 AM

    MASHA ALLAH

    • Anonymous
      Anonymous February 26, 2024 at 1:40 AM

      Mashallah 👍👍👍

    • Anonymous
      Anonymous February 26, 2024 at 2:20 AM

      masa allah

    • Anonymous
      Anonymous April 1, 2024 at 5:53 AM

      Mashallah

  • Anonymous
    Anonymous December 21, 2023 at 4:39 PM

    Masha Allah

  • Ishrat jahan
    Ishrat jahan December 27, 2023 at 2:52 PM

    Mashallah 😊😊😊😊😊hme yaad karne main bhut asani hui

    • Anonymous
      Anonymous February 17, 2024 at 5:15 PM

      Mashallah

  • Anonymous
    Anonymous February 1, 2024 at 6:01 PM

    Masha Allah

  • Anonymous
    Anonymous February 8, 2024 at 12:07 AM

    माशा अल्लाह

  • Anonymous
    Anonymous February 16, 2024 at 3:11 PM

    Aamiin🤲

  • Anonymous
    Anonymous February 25, 2024 at 9:33 AM

    Mashallah

    • Anonymous
      Anonymous February 25, 2024 at 10:05 PM

      Aameen

  • Anonymous
    Anonymous February 26, 2024 at 1:22 AM

    Mashallah alhamdullilah ❤

  • Anonymous
    Anonymous February 26, 2024 at 3:31 AM

    👑👑👑👑👑👑🌹🌹🌹🌹👑👑👑👑🤲🤲🤲🤲🤲🤲💯✅👍

  • Anonymous
    Anonymous February 26, 2024 at 5:38 AM

    Masah Allah

  • Anonymous
    Anonymous March 14, 2024 at 8:09 AM

    Bahut bahut shukriya 🤗

  • Anonymous
    Anonymous March 14, 2024 at 2:57 PM

    Mashallah ❣️

  • Anonymous
    Anonymous March 15, 2024 at 12:33 PM

    Mashallah ❤️

  • Anonymous
    Anonymous March 16, 2024 at 2:43 PM

    Mashaallha 💫✨

    • Anonymous
      Anonymous April 5, 2024 at 2:11 PM

      Mashaalah
      Very use ful

  • Anonymous
    Anonymous March 16, 2024 at 7:23 PM

    MashaAllha

  • Anonymous
    Anonymous March 17, 2024 at 5:32 AM

    Mashaallah

  • Anonymous
    Anonymous March 21, 2024 at 6:01 AM

    Mashallah sukoon mila

    • Anonymous
      Anonymous March 25, 2024 at 3:11 PM

      Mash Allah

  • Anonymous
    Anonymous April 6, 2024 at 5:51 AM

    Allmdullha

  • Anonymous
    Anonymous April 6, 2024 at 5:51 AM

    Allmdullha

    • Anonymous
      Anonymous April 11, 2024 at 10:04 AM

      Mashallah...

  • Anonymous
    Anonymous June 30, 2024 at 8:05 AM

    Masha Allah

  • Anonymous
    Anonymous August 4, 2024 at 6:18 AM

    MashaAllah

  • Anonymous
    Anonymous August 4, 2024 at 6:18 AM

    MashaAllah

  • Anonymous
    Anonymous August 11, 2024 at 4:25 AM

    JAZAAK ALLAH KHAIR

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