नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मुबारक आदतें और कुछ वाक़्यात। Nabi ka Kissa

अस्सलामु अलैकूम प्यारे दोस्तों, आज का आर्टिकल बहुत ही अहम आर्टिकल है क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम आपको नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की आदतें मुबारकां के बारे में बताने जा रहे हैं। आपको बताएंगे कि नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की रोज़मर्रा की जिंदगी में क्या मुबारक आदत थीं। चूंकि हर मुसलमान पर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की इत्तबा लाजिम है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि आप सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की आदत और सीरत से वाकिफ हो, ताकि आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मुकम्मल ईत्तबा कर सके । इस आर्टिकल को अमल की नीयत से आखिर तक जरूर पढ़ें। आप को बहुत फायदा होगा। तो चलिए आर्टिकल का बकायदा आगाज करते है ।

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नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मुबारक आदतें

दोस्तों मुख्तलिफ रिवायात मुतफिक है के रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम जिस्म और लिबास की सफाई का बेहद ख्याल रखते थे। कभी कभार आप सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम बाल भी बढ़ा लेते थे, मगर बालों को निहायत साफ सुथरा और कंघी से संवार कर रखते थे। आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम तेज तेज चलते थे। हत्ता के उनके सहाबा कराम रिजवानुल्लाहू अजमईन को उनके साथ कदम मिलाने में दिक्कत पेश आती थीं मगर वो गुफ्तगू निहायत ही आहिस्ता आहिस्ता करते थे। एक रावी के मुताबिक नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम इतना ठहर ठहर कर बोलते थे। उनके हर लफ्ज़ का एक एक हर्फ़ बा-आसानी गिना जा सकता था, चूंकि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के मुंह से निकलने वाला हर लफ्ज़ कानून था। लेहाजा वो चाहते थे कि वो जो कुछ कहे, सुनने वाले उसे अच्छी तरह समझ लें।
नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम सादा और सस्ता जुबान इस्तेमाल करते थे, चाहे वो किसी फर्ज से गुफ्तगू कर रहे हो या मुसलमानों के इजत्मा से खिताब कर रहे हो। उनका तर्ज़ ए तकल्लुम हर तरह के तसअन्ना से पाक होता था।

प्यारे दोस्तों हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम निहायत सादगी से जिंदगी बसर करते थे, वो अपने जूतों की खुद मुरम्मत करते, अपनी बकरियों का दूध निकालते। और इस काम के लिए अपने खादिम को तकलीफ देना भी गवारा ना करते। उनके जाती खादिम हजरत अंश रजिअल्लाहू तआला अनहू का कहना है, मैंने 10 साल रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की खिदमत ए अकदस में गुजारे। उन्होंने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा के तुमने ये काम क्यों नहीं किया? या क्यों किया है? वो हमेशा मुझसे निहायत शफकत फरमाते। 

नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को‌ बच्चों से लगाव।


दोस्तों रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आदतें मुबारकां थी, के आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम नन्हे मुन्ने बच्चों से बड़ा प्यार करते थे और जहाँ कहीं बच्चो को देखते खुश हो जाते। और बच्चों को हंसाने के लिए उनसे मजाक भी करते। फितरी तौर पर वो अपने नवासों, हजरत हसन और हजरत हुसैन रजिअल्लाहू तआला अनहू से भी बेहद मोहब्बत करते । बाज औकात वो नमाज़ के दौरान भी उनमें से एक को बाजुओं में उठा लेते। जब आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम सजदे में में जाते तो नवासे को पास खड़ा कर लेते और सजदे से उठकर उसे फिर गोद में ले लेते। जब दोनों बच्चे ज़रा सयाने हुए तो वो मस्जिद ए नबवी में इधर उधर दौड़ते फिरते । नमाज़ बा-जमात के दौरान कभी कभार वो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के टांगों मे से गुजर जाते। रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम उन्हें कुछ न कहते।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हर एक से अच्छा बर्ताव करते थें। हत्ता के मुअम्मर ख्वातीन उनसे लंबी लंबी बेसरोपा बातें भी करती। मगर रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम कोई उकताहट महसूस ना करते। सुबहान अल्लाह । क्या शान हैं हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ।
आगे पढ़ने से पहले आपसे गुजारिश है। के कमेंट में एक मर्तबा दरूद ए पाक तहरीर फरमा दे ताकि ये हमारी निजाद का जरिया बन सके।

नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की कुछ मुख्तलिफ वाक्यात

1- हज़रत मोहम्मद ﷺ और हज़रत जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू का वाकया

प्यारे दोस्तों आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आदतें मुबारका ये थी कि सफर के दौरान वो काफिला के हर फर्द के साथ राब्ता रखते थे। और बार बार लोगों के पास जाते ताकि वो खुश रहें। ऐसे ही एक मौके पर वह अपने पुराने दोस्त हजरत जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनुहू के पास गए। जो अपने बूढ़े ऊंट पर सवार जा रहे थे। हूजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने खुद पर इस तरह संजीदगी जारी कर ली, की कोई भी देखने वाला समझ सकता था। के नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मजाक फरमा रहे हैं। फिर उन्होंने जाबिर रजिअल्लाहू अनुहू से कहा। अच्छा क्या तुम अपना ऊंट मेरे हाथों फरोख्त करना चाहते हो? 
जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू ने जवाब दिया । हाँ, मगर एक शर्त पर कि मैं ऊंट मदीना वापस जाकर आप के सुपुर्द करूंगा। आप को चाहिए तो ले लीजिए।
रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कहा। आप बताइए 1 दिर्हाम में बेचोगे?
फिर जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू ने कहा ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम आप मुझे लूटना चाहते हैं,
फिर आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कीमत बढ़ाई। तो चलों 2 दिर्हाम ले लो। 
फिर भी जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू नहीं माने तो नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने 3 दिर्हाम फिर 4 दिर्हाम और फिर 5 दिर्हाम आखिरकार 40 दिर्हाम ऊंट की कीमत तय हुआ। और फिर जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू भी 40 दिर्हाम में मान गए।
फिर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने चंद इधर उधर की बातें की और काफिले में किसी और शख्स से मुलाकात के लिए रवाना हो गए । मदीना वापस पहुंच कर जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू ने अपनी जवजा (बीवी) से तमाम माजरा सुनाया। और बताया कि किस तरह सफर के दौरान रसूले खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से खुशगवार मुलाकात हुई थी। उनकी जवजा बहुत ही नेक थी । फिर उनकी जवजा ने हजरत जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू से इसरार किया कि वो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बात को मजाक तसव्वुर ना करें, बल्कि ऊंट रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के घर ले जाएं । जब रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को इत्तला मिली तो वो मुस्कुराए और उन्होंने अपने खजांची को हुक्म दिया। के जाबिर को 40 दिरहम अदा कर दिए जाएं। रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने वो ऊंट भी बतौर, तोहफा दोबारा जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू के हवाले कर दिया। ये ऊंट उसके बाद भी कई साल तक हज़रत जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू के पास रहा। जब भी जाबिर रजिअल्लाहू तआला अनहू को इस वाक्य की याद आती वो रसूल ए पाक सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इस यादगार तोहफे को देखते तो नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की याद में खो जाते।

 2- हज़रत मोहम्मद ﷺ और जानवरों से सफकत।

प्यारे दोस्तों, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम जानवरों पर भी बड़ी शफकत फरमाते एक रोज हजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम फ़ौजी दस्ते की मइयत में जा रहे थे। के एक सहाबी हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास किसी परिंदे के चंद छोटे छोटे बच्चों को लाएं। उनकी माँ भी साथ थी। रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने उससे पूछा तो सहाबी ने बताया मैंने इन बच्चों को एक घोंसले में देखा। जैसे ही मैं इनके करीब गया इनकी माँ, परवाज़ कर गई। मैंने तमाम बच्चों को अपने रुमाल में लपेट लिया। जब मैं चला तो इनकी माँ भी मेरे सर पर मंडराने लगी। मैंने रूमाल को जमीन पर खोलकर रख दिया। तो माँ भी बच्चों के पास आ गई और मैंने उसे भी बच्चों के साथ रुमाल में लपेट लिया। अब यह सब आपके सामने है। रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने सहाबी को हुक्म दिया। की वो तुरंत वापस जाएं और बच्चों को उनकी माँ समेत उनके घोंसले में छोड़ कर आए।

इसी तरह एक मर्तबा रसूले पाक सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फौज के हमराह जाते हुए एक कुतिया को देखा। जिसके बच्चे माँ का दूध पी रहे थे हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने एक सिपाही को कुतिया के पास खड़ा कर दिया। उसे हुक्म दिया गया कि वो सारी फौज गुज़रने तक कुतिया के पास खड़ा रहे और किसी को इसे परेशान न करने दें।

3- हज़रत मोहम्मद ﷺ और एक ऊँट का वाक़्या

एक रोज मदीना में एक ऊंट भागता हुआ आया और रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सामने घुटने टेक कर बैठ गया। फ़ौरन ही कुछ लोग भी वहां पहुंच गए। जो ऊंट को पकड़ना चाहते थे। रसूल ए खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने उनसे माजरा पूछा। तो उन्होंने बताया की ऊंट बहुत बूढ़ा हो गया है और अब वो कुएं से पानी खींचने का काम नहीं कर सकता। चुनांचे अब हम इसे जिबाह करना चाहते हैं, रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को ऊंट पर रहम आ गया। उन्होंने कहा। इसे चराहगाह में छोड़ दो। ‌ इसने तुम्हारी तवील (लम्बा ) अरसे तक खिदमत की है। ऊंट के मालिक रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बात से मुत्फिक हो गये और ऊंट को वापस ले गए।

हज़रत मोहम्मद ﷺ का किस्सा।

प्यारे दोस्तों रिवायात में आता है की एक और सफर के दौरान हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम चंद दोस्तों के साथ में थे उन्होंने सेहरा में मिलने वाले एक गड़रीये से भेड़ खरीदी। हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के एक रफ़ीक ए सफर ने कहा, मैं भेड़ को ज़बह कर लेता हू । दुसरे सहाबी ने जिम्मेदारी ली मैं इसकी खाल उतार दूंगा। तीसरे सहाबी ने गोस्त पकाने और खाना तैयार करने की हामी भर ली। हर एक ने कुछ ना कुछ काम अपने जिम्मे ले लिया । तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कहा। मैं जाकर कुछ सूखीं लकड़ियां इकट्ठी करता हू। तमाम सहाबा ने कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ये काम भी हम सब कर लेते है, मगर रसूल ए पाक सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया। मैं लकड़ियाँ जरूर लाऊँगा यह मुनासिब मालूम नहीं होता कि आप सब लोग तो काम करे और मैं कोई मदद ना करूँ। दोस्तों ये है अवसाफ और ये है आदात हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की। जो दो जहाँ के बादशाह हैं। 

आखरी बात 

ये थी कुछ मुख्तलिफ वाक्यात हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की। दोस्तों आज किसी को छोटा सा मर्तबा मिल जाए तो हुकुमरानी शुरू कर देता है और अपने मातहतों के साथ काम करने को तौहीन समझता है। एक हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम थे जिन को नौकरों से भी कि लगाव था। अल्लाह तआला हमें नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की नक्से क़दम पर चलने की तौफीक अता फरमाए। अमीन। 


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1 Comments
  • बेनामी
    बेनामी 4 मार्च 2024 को 1:32 am बजे

    Durood

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