Islam Se Pehle Arab Ke Halat in Hindi । इस्लाम से पहले अरब के हालात हिन्दी में।
नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम बनी नौ इंसान के लिए अल्लाह के आखिरी नबी है । और आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम पर नाज़िल होने वाली किताब कुरान ए मस्जिद अल्लाह ताला की आखरीं किताब है। लेहाज़ा नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की पाकीजा जिंदगी इंसानियत के लिए ता क़यामत वाजिबूल इतबा और हिदायत का सर चश्मा है, यक़ीनन रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी तुम्हारे लिए बेहतरीन नमूना है। लेहाजा रहमतूल लिल आलमिन की सिरते मोत्ताहारा हर मुसलमान की जिंदगी का लाजमी हिस्सा करार पाया। सिरतूल नबवी मुकम्मल तौर पर बयान करना इस वक्त मुमकिन नहीं । जब तक इस्लाम से पहले और बाद के हालात का तकाबिल न किया जाए। इसलिए आज के आर्टिकल में हम इस्लाम से पहले अरब की कैफ़ियत बयान करेंगे। अरब अकवाम और उनकी मोआशरत का नक्शा खींचेंगे। फिर वो हालात बयान करेंगे, जिनमें रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बेसत हुई।
जुनूब में बहर ए अरब है, जो दरअसल बहर ए हिन्द का फैलाव है। सूमाल में मुल्क, शाम और किसी कदर शुमाली इराक है। इनमें से बाज सरहदों के बारे में एख्तलाफ भी है। कुल रकबे का अंदाजा 10 लाख से 13 लाख मुरब्बा मिल तक किया गया है।
अरब आरबी यानी कहतानी अरब का असल गहवारा मुल्क यमन था। यानि उनके खानदान और काबिले मुख्तलिफ शाखाओं में फूटे और फैले और बढ़ें। इनमें से दो कबीलों ने बहुत शोहरत हासिल की।
एक हमीर जिसकी मशहूर शाखें। जैदुल जम्महुक, काजा और सजासक है।
दूसरा कहलान जिनके मशहूर शाखें हमदान, यनमार, तिअ, मज्जज, कंदा, लहम, जजआम, अज़द , औस, खिजरज और औलादें जफा हैं, जिन्होंने आगे चलकर मुल्क शाम के अतराफ में बादशाहत कायम की और आलेगसान के नाम से मशहूर हुए।
इल्यास बिन मज़र से मदरका बनु अशद बिन खुजैमा और किनाना बिन खुजैमा के कबायल वजूद में आए।
फिर किनाना से कुरैश का कबीला वजूद में आया। फिर कुरैश के मुख्तलिफ शाखाओं में तकसीम हुए। मशहूर कुरैशी शाखों के नाम ये है
इस दौर में यमन के अंदर मुसल्सल इसतराब और इंतसार बरपा रहा। इंकलाबात आए खाना जंग्गिया हुई ,और बैरूनी कामों को मदाखलत के माबाके हाथ आएं। यहाँ तक कि एक वक्त ऐसा भी आया के यमन की आज़ादी से सलब हो गई चुनांचे उसी दौर में रोमियो ने अदन पर फौजी कब्जा किया। और उनकी मदद से हबसियो ने हमीर और हमदान की आपस की कशमकश से फायदा उठाया। और 340 ईस्वी में पहली बार यमन पर कब्जा किया। ये कब्जा 378 ईसवी तक बरकरार रहा।
Islam Se Pehla Arab Ke Halat Part 1.
अरब अकवाम और उनकी मोआशरत का नक्शा
लफ्ज़ अरब के मानी सेहरा और बे आबू गया जमीन के है । अहदे कदीम से ये लफ्ज़ जज़ीरा नुमा अरब और इस में बसने वाले लोगों के लिए बोला गया है। अरब के मगरीब में बाहरे अहमर , और जज़ीर ए नुमा सिना है मशरिक में खलीजे अरब और जुनूब इराक का एक बड़ा हिस्सा है।जुनूब में बहर ए अरब है, जो दरअसल बहर ए हिन्द का फैलाव है। सूमाल में मुल्क, शाम और किसी कदर शुमाली इराक है। इनमें से बाज सरहदों के बारे में एख्तलाफ भी है। कुल रकबे का अंदाजा 10 लाख से 13 लाख मुरब्बा मिल तक किया गया है।
Arab Kaum Ke Teen Mukhya Kisme |अरब कौम के तीन मुख्य किस्में।
1-अरब वायदा
यानी वो कदीम अरब कबिला और कौमी जो बिल्कुल ना पैद हो गई। और उनके मूत्तालीक जरूरी मालूमात भी मयस्सर नहीं है । मसलन आद, जम्मूद, जदेश, तलेसम, अमलाक, उमीम, जुरहम और जासिम वगैरह।2-अरब-ए-आरबा
यानी वो अरब काबिल या अरब बइनूल असी बिन कहतान के नस्ल से है। इन्हें कहतान अरब कहा जाता है।3- अरब-ए- मुस्तारबा
यानी वो कबायल जो सय्यदना इस्माइल अलैहि सलाम की नस्ल से है। उन्हें अदनानी अरब कहा जाता है।एक हमीर जिसकी मशहूर शाखें। जैदुल जम्महुक, काजा और सजासक है।
दूसरा कहलान जिनके मशहूर शाखें हमदान, यनमार, तिअ, मज्जज, कंदा, लहम, जजआम, अज़द , औस, खिजरज और औलादें जफा हैं, जिन्होंने आगे चलकर मुल्क शाम के अतराफ में बादशाहत कायम की और आलेगसान के नाम से मशहूर हुए।
Hazrat Ibrahim Alaihi Salam Aur Sayyida Sara Ki Zindgi|हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और सय्यदा सारा की जिन्दगी
अरबे मुस्तारबा के जद-ए-आलआ सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम असलन इराक के एक शहर के बासींदे थे, ये शहर दरियाए फराह के मगरबी साहिल पर कुफा के करीब वाके था। इसकी खुदाई के दौरान भी जो चीजें बरामद हुई। उनसे इस शहर के बारे में बहुत सी मालूमात मिली है। और सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम के खानदान के बारे में बाज तफ़सीलात मालूम हुई है। इस मुल्क के दिनी और इस्तमाई हालात भी सामने आई है। सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम यहां से हिजरत करके शहर ए हराम तसरीफ ले गए थे। और फिर फलस्तीन जाकर उसे अपने दावत सरगर्मियों का मरकज बना लिया। और दावत वो तबलीग़ के लिए यहीं से अंदरूनो बैरूनी मुल्क आते जाते रहते थे।
Hazrat Ibrahim Alaihi Salam ka Sayyida Hazrat se Nikah | हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का सय्यदा हाजरा से निकाह
एक बार आप मिस्र तसरीफ ले गए। फिरौन ने आपकी बीवी सय्यदा सारा अलैहि सलाम की कैफ़ियत सुनी तो बदनीयत हो गया। उन्हें बुरी नीयत से अपने दरबार में बुलाया। लेकिन अल्लाह ने सय्यदा सारा अलैहि सलाम की दुआ के नतीजे में गैबी तौर पर फिरौन की ऐसी गिरफ्त कि, की वो हाथ पांव मारने लगा। उसकी नीयते बद उसके मुँह पर मार दी गई। और वो इस हादसे की नौवींयत से समझ गया कि सय्यदा सारा अल्लाह की निहायत खास और मुकर्रब बंदी है। वो उनके इस वसह से इस कदर मुत्तासीर हुआ। की अपनी बेटी हाजरा को उनके खिदमत में दे दी। फिर सय्यदा सारा ने सय्यदा हाजरा को सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम की जोजियत में दे दिया। सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम दोनों को लेकर फलस्तीन वापिस तशरीफ लाए।
Hazrat Ismael Alaihi Salam| हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम
फिर अल्लाह ताला ने सय्यदा हाजरा के बदन से इब्राहिम अलैहिस्सलाम को एक फरजंद इस्माइल अलैहिस्सलाम अता फरमाया। सय्यदा सारा बेऔलाद थी इसलिए उन्हें बहुत गैरत आई, उन्होंने इब्राहिम अलैहिस्सलाम को मजबूर किया की वो सय्यदा हाजरा और उनके बच्चे के समेत जिला वतन कर दे। हालात में ऐसा रुख अख्तियार किया कि उन्हें सय्यदा सारा की बात माननी पड़ी। और वो हजरत हाजरा और इस्माइल अलैहिस्सलाम को लेकर हिजाज़ तसरीफ ले गए, वहाँ उन्हें एक वादी में उतार दिया। इसी जगह आज बैतुल्लाह है, उस वक्त नहीं था, सिर्फ टिलो की तरह उभरी हुई जमीन थी इसकी। शैलाब आता तो दाएं बाएं से कतरा कर निकल जाता था। वही मस्जिद ए हराम के बलाई हिस्से में जम जम के पास एक बहुत बड़ा दरख़्त था। आपने उन दोनों को उसी दरख़्त के पास छोड़ा था। उस वक्त मक्के में ना पानी था ना इंसान। इसलिए सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने एक पोटली मे चन्द खजूरे और एक मस्किजे में पानी रखा। इसके बाद फलस्तीन वापस चले गए।
Zamzam Ka Chasma |जमजम का चश्मा
उधर चंद ही दिनों में खजूरे और पानी खत्म हो गया, सख्त मुश्किल पेश आई, मगर इस मुश्किल वक्त में अल्लाह के फजल से जम जम का चश्मा फूट पड़ा। और उनके लिए खुराक का सामान बन गया। इस्माइल अलैहिस्सलाम जब जवान हुए तो जूरहम कबीले से अरबी सीखी। ये कबीला वहां पानी देखकर आबाद हो गया था। उस कबीले के लोग उन्हें पसंद करने लगे तो अपने खानदान की एक खातून से उनकी शादी कर दी। इसी दौरान में सय्यदा हाजरा का इंतकाल हो गया। उधर सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम को ख्याल आया कि अपना तर्का देखना चाहिए। चुनांचे वो मक्का मुकर्रमा तशरीफ ले गए। लेकिन सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम से मुलाकात ना हुई। बहु से हालात दरियाफ़्त किए। उसने तंगदस्ती की शिकायत की। आपने वसीयत की। इस्माइल आए तो कहना की अपने दरवाजे की चौखट बदल दे । सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम इसका मतलब समझ गए, और उन्होंने बीवी को तलाक दे दी और एक दूसरी औरत से शादी कर ली। जो जूरहम के सरदार मजाज बिन अमरो की साहबजादी थी। उनकी दूसरी शादी के बाद एक मर्तबा फिर सय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम मक्का तसरीफ ले गए। मगर इस बार भी सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम से मुलाकात न हो सकी। बहु से हाल पूछा तो उसने अल्लाह की हम्दो साना बयान की। आपने वसीयत की के सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम आए तो कहना अपने दरवाजे की चौखट बरकरार रखें और फिलिस्तीन वापस चले गए।
अल्लाह ताला ने मजाज की बेटी से इस्माईल अलैहिस्सलाम को 12 बेटे अता फरमाए। इन 12 बेटों से 12 कबीले वजूद में आई और सब ने मक्के में ही रिहाईश अख्तियार की। उनके हालात जमाने के गर्द में दबकर रह गए। सिर्फ न्यायूत और कैदार की औलाद गुमनामी से महफूज रही। कैदार बिन इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल मक्का मोअजिमा में ही फैलती रही। यहा तक के अदनान और उनके बेटे मात का जमाना आ गया। अदनानी अरब का सिलसिला नसब सही तौर पर यहा तक ही महफूज है। अदनान, नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सिलसिले नसब में 21 वीं पुश्त में आते हैं।
नजार के बेटों के नाम
बहरहाल मेद के बेटे नजार से कई खानदान वजूद में आए दर असल नजार के चार बेटे थे और हर बेटा एक बड़े कबीले का बुनियाद साबित हुआ।चारो के नाम ये है।- अबना
- मजर
- रबिया
- अयाद
इनमें से दो के कबीलों की शाखे और शाखो की शाखे बहुत ज्यादा है, चुनांचे रबिया से अशद बिन रबिया, गजा, अब्दे कैश, वायेल, बकर, तगलक और बनू हनीफा वगैरह वजूद में आए।
मजर की औलाद दो बड़े कबीलों में तकसीम हुई।
मजर की औलाद दो बड़े कबीलों में तकसीम हुई।
- कैश ऐलान बिन मज़र
- इल्यास बिन मज़र
कैश ऐलान से बनू सुलैन और बनू हवाजन बनू गूतफान, गूतफान से अब्स जबयान और असजा वगैरह वजूद में आए।
इल्यास बिन मज़र से मदरका बनु अशद बिन खुजैमा और किनाना बिन खुजैमा के कबायल वजूद में आए।
फिर किनाना से कुरैश का कबीला वजूद में आया। फिर कुरैश के मुख्तलिफ शाखाओं में तकसीम हुए। मशहूर कुरैशी शाखों के नाम ये है
Mashahur Qureshi Shakhain | मशहूर कुरैशी शाखाएं
जमाह, सहम, अदि, मखसूम, तिन, जहरा। और कसा बिन कलाब के खानदान यानी अब्दुल दार असद और अब्दे मुनाफ, ये तीनों कशा के बेटे थे। इनमें से अब्दे मनाफ के चार बेटे हुए जिनसे चार जैली कबीले वजूद में आए। यानी अब्दू शम्श, नौफल, मुतलिब और हाशिम । इन्हीं हाशिम की नस्ल से अल्लाह ताला ने हमारे नबी मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का इंतखाब फरमाया।
Ibne Abbas R. A. Ka Byaan | इब्ने अब्बास रजि० का बयान
इब्ने अब्बास का बयान है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया। अल्लाह ताला ने मखलुक पैदा फ़रमाई तो मुझे सबसे अच्छे गिरोह के अंदर रख। फिर कबायल को चुना तो मुझे सबसे अच्छे कबीले के अंदर बनाया। फिर घरानों को चुना तो मुझे सबसे अच्छे घराने में बनाया। लिहाजा मैं अपनी जात के एतबार से भी सबसे अच्छा हूं, और अपने घराने के एतबार से भी सबसे बेहतर हूं। जिस वक्त जजीरे अरब पर इस्लाम का सूरज तुलु हुआ। वहां दो किस्म के हुक्मरान थे, एक ताजपोश बादशाह जो हकीकत में आजाद और खुदमुख्तार नहीं थी। और दूसरे कबायली सरदार जिन्हें अख्तेयरात के हिसाब से वो ही हैसियत हासिल थी जो ताजपोश बादशाहो की थी। लेकिन उनकी अक्सरियत को एक इंतियाज ये हासिल था के वो मुकम्मल तौर पर आजाद और खुदमुख्तार थे।
ताजपोश हुक्मरान के नाम
शाहने यमन शाहन आलवाशान यानी शाम शाहान, हीरा यानी इराक बाकी अरब हुक्मरान ताजपोश ना थे। अरब आरबा में से कदीम तरीन कौम कौमे सबा थी। और यानी इराक़ से जो किताब बरामद हुए। उनमें ढाई साल कबल मसीह की इस कौम का जिक्र मिलता है। लेकिन इसके उरूज का ज़माना 11 सदी कबल मसीह से शुरू होता है। इसकी तारीख की अहमद अदवार ये।
650 कबले मसीह से पहले का दौर
इस दौर में सबा के बादशाहों का लकब मुकर्रब ए सबा था। उनका पाया तख्त सर्वा था। जिसके खंडरात आज भी मोआरिब के मगरिब में एक दिन के फासले पर पाए जाते हैं। ये खंडरात करीबा के नाम से मशहूर है। उसी दौर में मोआरिब के मशहूर बन की बुनियाद रखी गई। जिसकी यमन की तारीख में बहुत अहमियत हासिल है।115 कबले मसीह से 650 कबले मसीह तक का दौर।
इस दौर में सबा के बादशाहों ने मुकर्रब का लफ्ज़ छोड़ कर मलिक यानी बादशाह का लकब इख्तियार कर लिया और सर्वा के बजाय मारब को अपना दारुल सल्तनत बनाया। शहर के खंडरात आज भी सिना से 60 मील मशरिक में पाएं जाते हैं।
115 कबले मसीह से 300 ईसवी तक का दौर।
इस दौर में सबा की मोमलिकत पर कबीला हमीर को गलबा हासिल रहा, और उसने मारिब की बजाय रेदान को अपना पाया तख्त बनाया । फिर रेदान का नाम जोफार पड़ गया। इसके खंडरात आज भी शहरे यरेन के करीब दायरा नुमा पहाड़ी पर पाएं जाते हैं। उसी दौर में कौम ए सबा का जवाल शुरू हुआ।
300 ईसवी से आगाज-ए-इस्लाम तक का दौर।
यमन की आजादी और संगीन हादसे।
इसके बाद यमन की आजादी तो बहाल हो गई लेकिन मारिब के मशहूर बांध में दरारें पड़ना शुरू हो गए। यहाँ तक की 450 ईस्वी या 451 ईस्वी में बांध टूट गया। और वो अजीम सैलाब आया जिसका जिक्र कुरान मजीद की सूरज सबा में सैले अरम के नाम से किया गया है। फिर 523 ईस्वी में एक और संगीन हादसा पेश आया। वो ये के यमन के यहूदी बादशाह ज़ोन नवाज ने नजरान के ईसाइयों पर एक है हैवतनाक हमला किया। उन्हें ईसाई मज़हब छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश की जब वो इस पर आमादा न हुए तो जिन नवास ने खंदक खुदवाकर उन्हें भड़कती हुई आग में झोंक दिया। कुरान ए मजीद की सूरत बरूज में इस वाकये की तरफ इशारा किया गया है। इस वाकए का नतीजा ये हुआ कि ईसाइयत इंतकाम लेने पर तुल गई।
हबशियों का यमन पर कब्जा
वो पहले ही रूमी बादशाहो के कयादत में बिला वजह अरब की फतह की तैयारी कर चूके थे। अपने इलाकों को वसी करना चाहते थे। उन्होंने हबशियों को यमन पर हमले की तरगीब दी उन्हें बहरी बेड़ा मुहैया किया। हबशियों ने रोमियो की शह पाकर 525 ईस्वी में अरयाद की कयादत में 70,000 फौज से यमन पर दोबारा कब्जा कर लिए।
कमांडर अबराहा का अत्याचार
कब्जे के बाद अरयात ने शाही हबश की हैसियत से यमन पर हुक्मरानी की लेकिन फिर उसकी फौज के एक मातहत कमांडर अबराहा ने उसे कतल करके खुद यमन पर कब्जा जमा लिया और शाहे हाबस को भी राजी कर लिया, के वो इस कब्जे को तस्लीम कर लें। ये वही अबराहा है जिसने बाद में खाना काबा को ढाहने की कोशिश की और एक लश्कर ए जरार के साथ चंद हाथियों को भी लश्कर में शामिल कर लिया। जिसकी वजह से ये लश्कर आसहाबुल फील के नाम से मशहूर हुआ ।
529 कबले मसीह से 557 कबले मसीह का दौर
इराक और उसके नबाही इलाकों पर अहले फारिस की हुक्मरानी चली जा रही थी। उसे पारस भी कहा जाता है। उसका ज़माना 529 से 557 कबले मसीह है इसके मुकाबले में आने की किसी की जुर्रत नहीं थी। यहाँ तक कि 326 कबले मसीह में सिकंदर ने दारा अव्वल को शिकस्त देकर फ़ारसियों की ताकत तोड़ दी। जिसके नतीजे में उनका मुल्क टुकड़े टुकड़े हो गया। ये इंतेसार 223 ईस्वी तक जारी रहा। फिर अदनानी लोग अपना वतन छोड़कर उस तरफ आए उन्होंने लड़ भिड़ कर जज़ीरा फरात के एक हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया। उधर 226 ईसवीं में जब अर्द्ध शेर ने सासानी हुकूमत की दाग बेल डाली तो फ़ारसियों की ताकत एक बार फिर पलट आई। शाहने हीरा के पास फारसी फौज की एक यूनिट हमेशा रहा करती थी। जिस से बागियों की सरखूबी का काम लिया जाता था।
Makkah Me Abadi Ka Agaz | मक्का मोअजिमा में आबादी का आगाज
ये बात तो मशहूर है के मक्के में आबादी का आगाज सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम से हुआ। आपने 137 साल की उम्र पाई और ताहयात मक्के के सरबरा और बैतुल्लाह के मतवली रही है। आपके बाद आपके दो बेटे निबाई यूद और कैदार मक्के के बाली हुए। उनके बाद उनके नाना मजार बिन जरहमी ने इकत्दार अपने हाथ में ले लिया। इस तरह मक्के की सरबराही बनू जरहम की तरफ मुन्तक़िल हो गयी। और एक मुद्दात तक उन्हीं के हाथ में रही। सय्यदना इस्माईल अलैहिस्सलाम का ज़माना करीबन 2 हजार साल कबले मसीह है, इस हिसाब से मक्के में कबीला जरहम का वजूद कोई 2100 बरस तक रहा। और उनकी हुक्मरानी करीबन 2000 बरस तक रही।
बनु कजा का दौर
बनु कजा ने मक्का पर कब्जा करने के बाद बनू बकर को शामिल किए बगैर तनहा अपनी हुक्मरानी कायम की। अलबत्ता, तीन अहम और इंतियाज़ी मनसब मजरई कबायल के हिस्से में आई।
1- हाजियों को अरफ़ात से मूजदलफा ले जाना।
और 13 जिल हज को मीना से वापसी का परवाना देना। ये हज के सिलसिले का आखिरी दिन है। ये एजाज इलियास बिन मज़र के खानदान को हासिल था।
2-10 जिल हज की सुबह को मूजदलफा से मीना तक रवानगी। ये ऐजाज बनूँ अद्वान को हासिल था
3-हराम महीनों को आगे पीछे करना ये एजाज बनूँ किनैना की एक शाख बनू तमीम बिन अदि को हासिल था।
और 13 जिल हज को मीना से वापसी का परवाना देना। ये हज के सिलसिले का आखिरी दिन है। ये एजाज इलियास बिन मज़र के खानदान को हासिल था।
2-10 जिल हज की सुबह को मूजदलफा से मीना तक रवानगी। ये ऐजाज बनूँ अद्वान को हासिल था
3-हराम महीनों को आगे पीछे करना ये एजाज बनूँ किनैना की एक शाख बनू तमीम बिन अदि को हासिल था।
मक्का मुकर्रमा पर बनू कज़ा का एकतदार कोई 300 बरस तक रहा। यही ज़माना था जब अदनानी कबायल, मक्के और हेजाज से निकलकर नजफ़, इराक और बहरीन वगैरह में फैले। और मक्के के अतराफ में कुरैश की सिर्फ चंद शाखाएं कायम रही। मगर मक्के की हुकूमत और बैतुल्लाह की तौलियत में इनका कोई हिस्सा ना रहा।
कसा बिन कलाब का दौर
यहाँ तक कि कसा बिन कलाब का दौर आया । कसा ने मक्के का बंदोबस्त इस तरह से किया के कुरैश को मक्के के ऐतराफ से बुलाकर पूरा शहर उन में तकसीम कर दिया । और हर खानदान का ठिकाना मुकर्रर कर दिया। अलबत्ता महीने आगे पीछे करने वालों को उनके मनासिब पर बरकरार रखा। क्योंकि कसा ये समझता था कि ये रित है। इसमें रद्दोबदल करना दुरुस्त नहीं।
कसा का एक कारनामा ये भी है। के उस ने हरम ए काबा के शुमाल में दारूल नदवा तामीर किया। उसका दरवाजा मस्जिद की तरफ था। दारुल नदवा दरअसल कुरैश के पार्लियामेंट थी जहां तमाम बड़े बड़े और अहम मामलात के फैसले होते थे। कुरैश पर दारूल नदवा के बहुत एहसान है। क्योंकि ये उनके इतिहाद का जामिन था और यही उनकी उलझे हुए मसायल आसान तरीके से हल होते थे।
कसा का एक कारनामा ये भी है। के उस ने हरम ए काबा के शुमाल में दारूल नदवा तामीर किया। उसका दरवाजा मस्जिद की तरफ था। दारुल नदवा दरअसल कुरैश के पार्लियामेंट थी जहां तमाम बड़े बड़े और अहम मामलात के फैसले होते थे। कुरैश पर दारूल नदवा के बहुत एहसान है। क्योंकि ये उनके इतिहाद का जामिन था और यही उनकी उलझे हुए मसायल आसान तरीके से हल होते थे।
कसा को अजमत और सरबराही के कई मरतबे हासिल थे।
1- दारूल नदवा की सदारत जहाँ बड़े बड़े मामले के फैसले होते थे।
और जहाँ ये लोग अपनी बेटियों की शादियां भी करते थे
2- जंग का परचम भी उसी के हाथों में बांधा जाता था।
3- खाना काबा की पासबानी। इसका मतलब ये है की खाना काबा का दरवाजा कसा ही खोलता था। खाना काबा की खिदमत उसी के जिम्मे थी। चाबी बरदार भी वही था।
4- सकाया यानी पानी पिलाना। इसकी सूरत कुछ यूं थी के हौज में हाजियों के लिए पानी भर दिया जाता था। और इसमें कुछ खुजूर और किशमिश डालकर उसे शेरी बना दिया जाता था। हाजी जब मक्के आते तो इसे पीते थे।
5- रफादा। यानी हाजियों की मेजबानी। हाजियों के लिए बतौर इज़ाफ़त खाना तैयार किया जाता था। इस मकसद के लिए कसा ने कुरैश पर कुछ रकम मुकर्रर कर रखी थी। ये रकम हज के मौसम में उसके पास जमा हो जाती थी। वो इस रकम से हाजियों के लिए खाना तैयार करवाता था। जो लोग दंग दस्त होते या जिनके पास पैसा ना होता। वो यही खाना खाते थे। इनके अलावा कुछ और वोहदे भी थे, जिन्हें कुरैश ने आपस में तकसीम कर रखा था। उनकी तफसील ये है
और जहाँ ये लोग अपनी बेटियों की शादियां भी करते थे
2- जंग का परचम भी उसी के हाथों में बांधा जाता था।
3- खाना काबा की पासबानी। इसका मतलब ये है की खाना काबा का दरवाजा कसा ही खोलता था। खाना काबा की खिदमत उसी के जिम्मे थी। चाबी बरदार भी वही था।
4- सकाया यानी पानी पिलाना। इसकी सूरत कुछ यूं थी के हौज में हाजियों के लिए पानी भर दिया जाता था। और इसमें कुछ खुजूर और किशमिश डालकर उसे शेरी बना दिया जाता था। हाजी जब मक्के आते तो इसे पीते थे।
5- रफादा। यानी हाजियों की मेजबानी। हाजियों के लिए बतौर इज़ाफ़त खाना तैयार किया जाता था। इस मकसद के लिए कसा ने कुरैश पर कुछ रकम मुकर्रर कर रखी थी। ये रकम हज के मौसम में उसके पास जमा हो जाती थी। वो इस रकम से हाजियों के लिए खाना तैयार करवाता था। जो लोग दंग दस्त होते या जिनके पास पैसा ना होता। वो यही खाना खाते थे। इनके अलावा कुछ और वोहदे भी थे, जिन्हें कुरैश ने आपस में तकसीम कर रखा था। उनकी तफसील ये है
कुरैश कबायल के वोहदे।
1- फालगीरी - किस्मत का हाल मालूम करने के लिए बूतो के पास जो तीर रखे रहते थे उनकी तौलियत ये मनसब बनूँ जमाह को हासिल था।
2- मालियात का नसब - यानी बूतो का कुर्ब हासिल करने के लिए जो नजराने और कुर्बानी पेश की जाती, उनका इंतजाम करना। झगड़ों और मुकदमात का फैसला करना। ये काम बनू शाहम को सौंपा गया।
3- अशनाग - यानी जुर्मानों का नसीब। इस मनसब पर बनूँ तिइं फाइस थे
4- क़ौमी परचम उठाना - ये बनु उमैया का काम था
5- फौजी कैंप का इंतजाम - ये काम बनूँ मकसूम के इस हिस्से में आता था।
6- शफारद - ये काम बनु अदि का था।
2- मालियात का नसब - यानी बूतो का कुर्ब हासिल करने के लिए जो नजराने और कुर्बानी पेश की जाती, उनका इंतजाम करना। झगड़ों और मुकदमात का फैसला करना। ये काम बनू शाहम को सौंपा गया।
3- अशनाग - यानी जुर्मानों का नसीब। इस मनसब पर बनूँ तिइं फाइस थे
4- क़ौमी परचम उठाना - ये बनु उमैया का काम था
5- फौजी कैंप का इंतजाम - ये काम बनूँ मकसूम के इस हिस्से में आता था।
6- शफारद - ये काम बनु अदि का था।
कबाइल में सरदार को वो ही इख्तियारात हासिल थे जो किसी बादशाह को हासिल होते हैं। हत्ता के बाज किरदारों का ये हाल था कि अगर कभी वो बिगड़ जाते थे तो हज़ारो तलवारें बेनियाम हो जाती थी। और वो ये भी नहीं पूछते थे कि सरदार के गुस्से का सबब क्या है?
जज़ीर ए अरब के तीन सरहदी इलाके थे। ये तीनों गैर मुतालिक के पड़ोस में थे। उनकी सियासी हालत सख्त परेशान कून थी, वहाँ इंतसार की कैफ़ियत थी, इंसान जालिम था या मजलूम हाकिम था या महकुम बस इन्हीं दो तबकों में बंटा हुआ था। तमाम तरफ अवायद सरबराहों को खास तौर पर गैर मुल्की सरबराहों को हासिल थे। और सारा बोझ गुलामों के सर था। वो तरह तरह के जुल्मों सितम बर्दाश्त करते थे, जुबान नहीं खोल सकते थे। क्योंकि हुक्मरानी जबरदस्ती थी। इंसानी हुकूक नाम की किसी चीज़ का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था।
जज़ीर ए अरब के तीन सरहदी इलाके थे। ये तीनों गैर मुतालिक के पड़ोस में थे। उनकी सियासी हालत सख्त परेशान कून थी, वहाँ इंतसार की कैफ़ियत थी, इंसान जालिम था या मजलूम हाकिम था या महकुम बस इन्हीं दो तबकों में बंटा हुआ था। तमाम तरफ अवायद सरबराहों को खास तौर पर गैर मुल्की सरबराहों को हासिल थे। और सारा बोझ गुलामों के सर था। वो तरह तरह के जुल्मों सितम बर्दाश्त करते थे, जुबान नहीं खोल सकते थे। क्योंकि हुक्मरानी जबरदस्ती थी। इंसानी हुकूक नाम की किसी चीज़ का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था।