Zakat Ke Masail in Hindi | जकात के मसायल हिन्दी में ।

Zakat Ke Masail in Hindi | जकात के मसायल हिन्दी में ।

Zakat ke Masail Quran Aur Hadith ki Roshni me । जकात के मसायल कुरान और हदीस की रोशनी में।

अल्लाह रब्बुल आलमीन कुरान-ए-करीम में इरशाद फरमाता है
"उनकी कहवत जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं। उस दाना की तरह जिसके उगाई सात (7) बाले। हर बाल में 100 दाने, और अल्लाह तआला इस से भी ज्यादा बढ़ाएं जिसके लिए चाहें, और अल्लाह तआला वसाअत इल्म वाला है। जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं। फिर दिए पीछे एहसान रखे ना तकलीफ दे। उनका नेग उनके रब के पास है और उन्हें ना कुछ अंदेशा हो ना कुछ गम।" (सूरह बकरा, पारा 3, आयत 261-262, तर्जुमा: कन्ज़ुल ईमान)

इस आयत से हमें ये मालूम होता है कि अल्लाह की राह में अपना माल खर्च करने से कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। ज़कात अदा करके उसका एहसान ना जाताओ, ना उसके लिए तकलीफ़ दो। अक्सर लोग एहसान जाते हैं मगर ये भूल जाते हैं कि अल्लाह देनेवाला है हम तो बस एक जरिया है। "तुम फरमाओ बेशक! मेरा रब रिज्क वसीआ फरमाता है अपने बंदों में जिसके लिए चाहे और तंगी फरमाता है जिसके लिए चाहे। और जो चीज अल्लाह की राह में खर्च करो वह उसके बदले में और देगा। और वह सबसे बेहतरीन रिज्क देने वाला। " (सूरह सबा, पारा 22, आयत 39, तर्जुमा: कन्ज़ुल ईमान)

"बेशक ! तुम्हारा रब जिसे चाहे रिज्क कुशादा देता और कस्ता है, 
बेशक! वह अपने बंदों को खूब जानता, देखता है। और अपनी औलाद क़त्ल न करो मुफ़लिसी के डर से। हम तुम्हें भी और उन्हें भी रोजी देंगे। 
बेशक ! उनका कतल बड़ी खाता है।" (सूरह बनी इसराईल, पारा 15, आयत 30-31, तर्जुमा: कन्ज़ुल ईमान) 

बेशक ! अल्लाह रब्बुल आलमिन मालिक है सारे जहांनो का। तमाम तारीफ अल्लाह के लिए है। अल्लाह जिसे चाहता है रिज्क देता है और जिसे चाहें तंगी फरमाता है। तो मोमिनों अल्लाह की राह में अपना माल खर्च करो वो दोगूना अता फरमाएगा। 
बेशक ! अल्लाह अपने वादे के खिलाफ नहीं फरमाता। "और रिश्तेदारों को उनका हक दे। और मिस्किन और मुसाफिर को। और फ़िज़ूल ना उड़ाओ। बेशक! उड़ाने वाले शैतान के भाई हैं। और शैतान अपने रब का बड़ा ना शुक्र है।"
(सूरह बनी इस्राइल, पैरा 5, आयत 26-27, तर्जुमा: कन्ज़ुल इमान)

ज़कात में सबसे पहले अपने क़रीबी रिश्तेदारों का हक है। हदीस में है वो लोग अपने रिश्तेदारों को छोड़ किसी और को जकात देते है उनकी जकात कबूल नहीं होती है।
कुरान
ऐ ईमान वालो! अल्लाह की राह में हमारे दिए में से खर्च करो वह दिन आने से पहले जिसमें ना खरीद फरोख्त है ना काफ़िरो के लिए दोस्ती ना शफाअत और काफिर खुद ही जालिम है। (सूरह बकरा, पारा 2, आयत 254, तर्जुमा: कन्ज़ुल ईमान)

"कुरान" 
नेकी इसका नाम नहीं कि तुम अपना मुंह मशरिक या मगरिब की तरफ करो, नेकी तो उसकी है जो अल्लाह और पिछले दिन (कयामत) और मलयका (फरिश्तों) और किताब (जो आसमान से उतरी) और अंबिया (हजरत आदम से हुजूर तक) पर ईमान लाया। और माल की मोहब्बत पर रिश्तेदारों और यतीमों और मुसाफिर और सालेहीन और गर्दन छुड़ाने में दिया.
और नमाज कायम की और जकात दी, और नेक वो लोग हैं जब कोई मोआईदा करे तो अपने अहद (वादें) को पूरा करे, और तकलीफ़ और मुसीबत के वक्त सब्र करने वाले, वो लोग सच्चे और वही लोग मुत्तकी हैं। (तर्जमा कन्ज़ुल इमान शरीफ, पारा-2, सूरह बकरा, आयत-177)

"कुरान" 
जो लोग सोना और चांदी जमा करते हैं उन्हें दर्दनाक अजब की खुशखबरी सुना दो, जिस दिन जहन्नम की आग में वो तपाए जाएंगे, और उनसे उनकी पेशनिया और करवातेन और पीठ दागी जाएगी, ये वो है जो तुम ने अपने नफ्स के लिए जमा किया था, तो अब चाखो जो जमा करते थे, (कंज़ुल ईमान शरीफ़, पारा-10, सूरह तौबा आयत-35) 

 अपने माल की जकात ना देने वालों पर किस तरह का अजाब होगा हुजूर नबिया करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम का इरशादे पाक ये है

"हदीस":
जो सोने और चांदी के मालिक हो और उसका हक अदा ना करे तो जब कयामत का दिन होगा उसके लिए आग के पत्थर बनाए जाएंगे । 
उनपर जहन्नम की आग भड़क जाएगी, और उनसे उसकी करवट और पेशानी और पीठ दागी जाएगी, जब ठंडा होने पर आएंगे फिर वैसा ही किया जाएगा । ये मामला हमारे दिन का है जिसके एक दिन का मिकदार 50000 साल है (कयामत का दिन) और ऊंटों के बारे में फरमाया जाएगा जो उसका हक अदा नहीं करता कयामत के दिन उसे एक खुले मैदान में लिटाया जाएगा और वो ऊंट मोटे मोटे होंगे और उसे पैरों से कुचलेंगे और दांतों से काटेंगे, जब ऊंटों की जमात खत्म होगी तो फिर गए और बकरियां आएंगी और अपने सींगों से मारेगी और खुरों से रौंदेगी।
( सही बुखारी , किताबुल जकात ,बाब जकातूल बकरा , जिल्द 1 , सफा 492, हदीस 1460,,)

हदीस
हुजूर अकरम सल्ललाहू अलैहि फरमाते हैं, जो क़ौम ज़कात अदा नहीं करती वो कहद में मुब्तिला होगी । जैसे- तरह तरह की बिमारियों, आसमानी आफतें , खुश्की,


हदीस:
हज़रत उमर फ़ारूक़ से रिवायत है हुज़ूर पाक सल्ललाहू अलैहि वसल्लम का इरशदे आली है "जो माल खुश्की (ज़मीन पे) और तरी (पानी में) तलफ़ (बर्बाद) होता है वो ज़कात ना देने से तलफ़ होता है"।


Zakat Na Dene Ke Azabat Aur Zillaten । जकात ना देने की अजाब और ज़िल्लत।


हदीस
फ़क़ीर हरगिज़ नंगे भुखे होने की तकलीफ़ ना उठाएगे मगर मालदारों के हाथों, तो ऐ मालदारो सुन लो, अल्लाह तुम से सख़्त हिसाब लेगा और दर्दनाक अज़ाब देगा ( ﺍﻟﺘﺮﻏﻴﺐ ﻭﺍﻟﺘﺮﻫﻴﺐ، ﻛﺘﺎﺏ ﺍﻟﺼﺪﻗﺎﺕ، ﺟﻠﺪ -2 , ﺻﻔﺤﮧ -275 ﺪ ﺍﻟﺤﺪﯾﺚ -5।)
हदीस:
दोज़ख में सब से पहले 3 शख्ख जाएंगे उनके एक वो मालदार जिसने अपने माल में अल्लाह का हक अदा नहीं किया ( ﺻﺤﯿﺢ ﺍﺑﻦ ﺧﺰﻳﻤﺔ، ﻛﺘﺎﺏ ﺍﻟﺰﻛﺎﺓ، ﺑﺎﺏ ﺫﻛﺮ ﺍﻟﻨﺎﺭ ..... ﺇﻟﺦ، ﺟﻠﺪ -4 ﺻﻔﺤﮧ -8 ﺍﻟﺮﻗﻢ ﺍﻟﺤﺪﻳﺚ -2249। ) 
हदीस
सही सनद से ये हदीस हजरत अब्दुल्ला बिन मसूद रजिअल्लाहू अनुहू से मारवी है फरमाते हैं, हमें हुक्म हुआ नमाज़ पढ़े ज़कात दें, जिसकी ज़कात ना दी उसकी नमाज क़ुबूल नहीं (ﺍﻟﻤﻌﺠﻢ ﺍﻟﻜﺒﻴﺮ، ﺟﻠﺪ -10 ﺻﻔﺤﮧ -103 ﺍﻟﺮﻗﻢ ﺍﻟﺤﺪﻳﺚ -10095।)

हदीस
हज़रत अबू हुरैरा रजिअल्लाहू अनुहू से राहत है इक मरतबा हुजूर सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने खुतबा पढ़ा और फरमाया. कसम है उसकी (अल्लाह की) जिसके हाथ में मेरी जान है, इसको 3 बार फरमा कर सर को झुका लिया, तो हम सब ने सर झुका के रोना शुरू किया, हमें ये नहीं मालूम हुजूर ने कसम क्यों खाई, फिर हुजूर ने अपना सर मुबारक उठाया तो चेहरे पर खुशी के आसार झलक रहे थे, तो हमें ये बात लाल ऊंट से ज़ियादा प्यारी मालूम हुई, आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम  ने फरमाया, जो बन्दा 5 वक्त की नमाज पढ़ता है, रमजान का रोजा रखता है और जकात देता है, और 7 बड़े गुनाहों से बचाता है उसके लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और हुकम होता है सलामती के साथ दखिल हो जा।  सफा 399, -हदीस 2435 )

हदीस
2 औरतेन हुजूर सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की खिदमते अकदस में हाजिर हुई, उनके हाथों में सोने के कंगन थे । सरकार-ए-दो आलम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया क्या तुम इनकी ज़कात अदा करती हो? अर्ज़ की नहीं, आपने फरमाया क्या तुम पसंद करती हो कि अल्लाह तआला तुम्हें आग के कंगन पहनाएं? अर्ज की नहीं। फरमाया तो जकात अदा करो ( ﺟﺎﻣﻊ ﺍﻟﺘﺮﻣﺬﻱ، ﺃﺑﻮﺍﺏ ﺍﻟﺰﻛﺎﺓ، ﺑﺎﺏ ﻣﺎ ﺟﺎﺀ ﺟﻠﺪ -2, ﺻﻔﺤﮧ -132। ﺍﻟﺮﻗﻢ ﺍﻟﺤﺪﻳﺚ 637 -)


Jaruri Baat | जरूरी बात।

इन तमाम मुकद्दस इरशादत को पढ़ने के बाद भी कोई कम नसीब जकात की अहमियत को ना समझे और अपने माल को बुराई से, अजब से, पाक न करे तो उस बदबख्त का क्या इलाज? किस कदर अफसोस का मकाम है कि इस पाक महिने में कितने मुसलमान ऐसे हैं जिनके घर चूल्हा नहीं जलता और कोई तो है जिसके पास रखने की जगह नहीं मगर उसे ये तौफीक नहीं कि उन गरीब नादारों मुफलिसो की खबर ले ।
आज अरब ममालिक में दौलत की रेल पेल है और बर्रे सगीर में लाखों मुसलमान भुखमरी के शिकार हैं ईमान ओ इस्लाम के बालंद ओ बाला नारे लगाने वाले कभी इनकी भी खबर ले । हम मुसलमान हैं हमारा हर फर्ज से बड़ा फर्ज अल्लाह ओ रसूल के फरमान के आगे सर खाम करना है। हमें मुफ़लिसो नादरो गरीब यतीम बेवा बेकस लाचार मुसलमानो की खबर लेनी चाहिए इंशाअल्लाह इस पे अमल हुआ तो अमन ही अमान कयाम होगा ।

अल्लाह तआला हमें दिन के रास्ते पे चलने की तौफीक अता फरमाए।। आमीन।।

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1 Comments
  • Anonymous
    Anonymous January 21, 2024 at 9:42 AM

    जिस इंसान को जकात दी जाए,तो जकात देने से पहले उसकी स्थिति जानना किस हद तक सही है, कि हम जिसे जकात दे रहे हैं वो जकात लेने लायक है भी या नहीं,इसकी दलील पेश करो,कि जकात आंखें मूंद कर देनी चाहिए या उसकी स्थिति जानने के बाद देनी चाहिए

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