नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के दुनिया से पर्दा फरमाने के बाद, हज़रत बिलाल शाम चलें गए, और वही बस गए, एक अर्शे के बाद ख्वाब में नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की जियारत हुई, आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बिलाल हमसे मिलना क्यों छोड़ दिया, आंख खुलते ही हजरत बिलाल मदीना के लिए रवाना हो गए,
Hazrat Bilal Habsi Ka Waqia in Hindi | हज़रत बिलाल हबसी का वाक्या हिंदी में
कई दिनों की मसाफत के बाद हज़रत बिलाल मदीना मनउवरा पहूंचे मस्जिद नबवी मे हाजरी दी और रोजा रसूल पर पहुंचे, वही बेहोश हो कर गिर पड़े, होश में आए तो अहले मदीना ने कहा एक बार वही अजान सुना दे सरकार के ज़माने वालीं,
हज़रत बिलाल ने माजरत की कि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा, लोगो ने हसनैन करीम से कहलवाया, अब इनकार करना नामुमकिन था, हज़रत बिलाल ने अजान सुरु की तो अहले मदीना रो पड़े, दिल काबू में ना रहें, प्यारे आका सल्ललाहू अलैहि वसल्लम का जमाना ताजा हो गया, औरतें बच्चे सब निकाल आए, गम से निढाल बेकरार हिचकियां बंध गई जब हज़रत बिलाल ने कहा,
अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह ।
लोग चीखें मार कर रोने लगे, हज़रत बिलाल की नजर मेम्बर रसूल पर पड़ी, मेम्बर खाली था, सरकार नहीं थे, खाली मेम्बर देख कर हज़रत बिलाल गिर कर बेहोश हो गए, अजान मुकम्मल ना कर सकें, होश मे आए तो उठें और रोते हुए शाम की तरफ़ रवाना हो गए।
Hazrat Bilal Ka Waqia In Hindi । हज़रत बिलाल हबसी रजि ० का वाक्या
ऐलान ए नबुवत के चन्द रोज के बाद नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम एक रात मक्के की एक गली से गुजर रहे थे। के उन्हें एक घर में से किसी के रोने की आवाज आयी? आवाज़ में इतना दर्द था की आप सल्ललाहू अलैहि व सल्लम बे अख्तियार घर में दाखिल हो गए। देखा के एक नौजवान जो के हब्सी मालूम होता है चक्की पीस रहा है और जारो कतार रो रहा है। आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने उससे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया की मैं एक गुलाम हूं, सारा दिन अपने मालिक की बकरियां चराता हूं , शाम को जब थक कर आता हूं तो मेरा मालिक मुझे गंदुम ( गेहूं ) की एक बोरी पीसने के लिए दे देता है। जिसको पीसने में सारी रात लग जाती है। मैं अपने किस्मत पे रो रहा हूं की मेरी भी क्या किस्मत है। मैं भी तो एक इंसान हूं मेरा भी जिस्म आराम मांगता है, मुझे भी नींद सताती है, लेकिन मेरे मालिक को मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता। क्या मेरे मुक्कदर में सारी उम्र इस तरह रो रो कर जिंदगी गुज़ारना लिखा है?
नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की मैं तुम्हारी मालिक से कहकर तुम्हारी मशक्कत तो कम नहीं करवा सकता, क्योंकि वो मेरी बात नहीं मानेगा, हां मैं तुम्हारी थोड़ी मदद कर सकता हूं की तुम सो जाओ, और मैं तुम्हारी जगह चक्की पीसता हूं। वो ग़ुलाम हुआ, और शुक्रिया अदा करके सो गया, आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम उसकी जगह चक्की पीसते रहे, जब गंदूम ( गेहूं ) खत्म हो गयी तो आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम उसे जगाए बगैर वापस तशरीफ ले आए। दूसरे दिन आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम वहां तशरीफ ले गए । और उस ग़ुलाम को सुला कर उसकी जगह चक्की पीसते रहे। तीसरे दिन भी यही माजरा हुआ। आप उस ग़ुलाम की जगह सारी रात चक्की पीसते और सुबह खामोशी से अपने घर में तशरीफ़ ले आते। चौथी रात जब आप वहां गए तो उस गुलाम ने कहा, ऐ अल्लाह के बंदे आप कौन हैं और मेरा इतना ख्याल क्यों कर रहे हैं? हम गुलामों से ना तो किसी को कोई डर होता है और ना ही कोई फायदा, तो फिर आप ये सब कुछ किस लिए कर रहे हैं? आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया मैं ये सब कुछ इंसानी हमदर्दी के तहत कर रहा हूँ। इसके अलावा मुझे तुमसे कोई गरज नहीं ।
Hazrat Bilal Habsi Ka Iman lana । हज़रत बिलाल हबसी रजि० का ईमान लाना।
उस ग़ुलाम ने कहा की आप कौन हैं? नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया क्या तुम्हें मालूम है कि मक्का में एक शख्स ने नबुवत का दावा किया है? उस गुलाम ने कहा, हां मैंने सुना है की एक शख्स जिसका नाम मोहम्मद है और अपने आपको अल्लाह का नबी कहता है, आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैं वही मोहम्मद हूं। ये सुनकर उस गुलाम ने कहा कि अगर आप वो नबी है तो मुझे अपना कलमा पढ़ाइए, क्योंकि इतना सफिक और मेहरबान कोई नबी ही हो सकता है। जो गुलामों का भी इस कदर ख्याल रखें,
आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम ने उन्हें कलमा पढ़ा कर मुसलमान कर दिया। फिर दुनिया ने देखा की उस ग़ुलाम ने कितनी तकलीफ और मशक्कतें बर्दाश्त की लेकिन दामन ए मुस्तफा ना छोड़ा । उन्हें जान देना तो गवारा था लेकिन इतने शफीक और मेहरबान नबी का साथ छोड़न गवारा नहीं था। आज दुनिया उन्हें बिलाल हबसी रजि अल्लाह अनुहू के नाम से जानती है।
नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की हमदर्दी और मोहब्बत ने उन्हें आपका बे-लॉस गुलाम बनाकर रहती दुनिया तक मिसाल बना दिया। हुजुर सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के विशाल के बाद। सैयदना बिलाल हबसी रजि० गलियों में ये कहते फिरते के लोगों तुमने कहीं रसूल सल्ललाहू अलैहि वसल्लम को देखा है तो मुझे दिखा दो। फिर कहने लगे कि अब मदीने में मेरा रहना दुश्वार है । और शाम के शहर हलब चले गए ,
Khwab Me Nabi Kareem S.A.W. Ki Ziyarat । ख्वाब में नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जियारत।
जब हज़रत बिलाल रजिअल्लाहू अनुहू मदीना मनउवरा से शाम चले गये तो एक रात ख्वाब मे उन्हे नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जियारत नसीब हुई तो आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम फरमा रहे थे, ऐ बिलाल क्या बेवफाई हैं? तु ने हमें मिलना छोड़ दिया क्या हमारी मुलाकात का वक्त नहीं आया? ख्वाब से बेदार होते ही, उटनी पर सवार होकर लब-बाइक या सय्येदी या रसूल्लाह कहते हुए मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हो गए।
जब मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो सबसे पहले मस्जिद ए नबवी पहुँच कर हज़रत बिलाल के निगाहों ने आलम ए वारफतगी में आप सल्ललाहू अलैहि व सल्लम को ढूंढना शुरू कर दिया, कभी मस्जिद में तलाश करते और कभी हुजरो में। जब कही ना पाया तो आपकी क़ब्र ए अनवर पर सर रखकर रोना शुरू कर दिया और अर्ज किया , या रसूलल्लाह आपने फरमाया था के आकर मिल जाओ ग़ुलाम ए हलफ से बहरे मुलाकात हाजिर हुआ हूं, ये कहा और बेहोश हो कर मजारें पुर अनवार के पास गिर पड़े , काफी देर के बाद होश आया , इतने में सारे मदीने में ये खबर फैल गयी की मौवजने रसूल हज़रत बिलाल रजि ० अल्लाहू अनुहू आ गए हैं। मदीने तैयबा के बूढ़े जवान मर्द औरतें और बच्चे इकट्ठे होकर अर्ज करने लगे कि बिलाल एक दफा वो अजान सुना दो जो महबूब ए खुदा सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के जमाने में सुनाते थे।
आप रजि अल्लाहू तआला अनुहू ने फरमाया, मैं माजरत खाह हु क्योंकि जब मैं अजान पढ़ता हूँ तो
अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह ।
कहते वक्त आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की जियारत से मुशर्रफ़ होता और आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की दीदार से अपनी आँखों को ठंढक पहुंचाता , अब ये अल्फ़ाज़ अदा करते हुए किसे देखूंगा। बाज सहाबा कराम ने मशविरा दिया के हसनैन करीमैन से सिफारिश करवाई जाए जब वो हज़रत बिलाल को अज़न के लिए कहेंगे तो वो इनकार नहीं कर सकेंगे। चुनांचे इमामे हुसैन रजि अल्लाहू अनुहू ने हजरते बिलाल का हाथ पकड़कर फरमाया बिलाल हम आज आपसे वो ही अज़न सुनना चाहते हैं जो आप हमारे नाना जान अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहि वसल्लम को इस मस्जिद में सुनाते थे , अब हजरतें बिलाल रजि अल्लाहू तआला अनुहू को इनकार का याराना था। लिहाजा उसी मकान पर खड़े होकर अज़ान दें, जहाँ नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की जाहीर हयात में दिया करते थे, बात की कैफियात का हाल तो कुतबेसेर में यूं बयान हुआ है।
Hazrat Bilal Ka Azan । हज़रत बिलाल का अज़ान।
जब आप आप रजिअल्लाहू अनुहू ने बा आवाज़ें बुलंद (
अल्लाहू अकबर , अल्लाहू अकबर ) कहा तो मदीना मनउवरा गूंज उठा, आप जैसे जैसे आगे बढ़ते गए जज़्बात में इजाफा होता गया। जब "
असहदू अल्लाईलाह इल्लल्लाह" के कलिमात अदा किए गुज में मस्जिद इजाफा हो गया। जब
अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह ।
के कलिमात पढ़ें तो तमाम लोग हत्ता की पर्दा नसिन ख़्वातीन भी घरों से बाहर निकल आई, रिक्तूल गिरिया जारी का अजीब आलम था। लोगों ने कहा रसूल ए खुदा सल्ललाहू अलैहि वसल्लम तशरीफ ले आए है। आप सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के विशाल के बाद मदीना मुनव्वरा में इस दिन से ज्यादा रोने वाले मर्दों जन नहीं देखे गए।
अल्लामा इक़बाल -अल्लामा इक़बाल अजान ए बिलाल रजिअल्लाहू अनुहू को तराना ए इश्क़ करार देते हुए फ़रमाते है
"अजाने अजल से तेरे इश्क का ताराना बनी।
नमाज उसी के नजारें का एक बहाना बनीं।"नबी करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम, सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी कायनात की वो पहली अजीमो मुकद्दस हस्ती हैं जिनको दुनिया के पहले मोअजिन होने का आला शर्फ हासिल हुआ। अल्लाह के रसूल ने खुद इरशाद फरमाया कि बिलाल किस कदर अच्छा आदमी है, वो तमाम मोअजिनो का सरदार है, आप के
वालिद रबाह, और
वालिदा हम्मामा अरब की एक कबीले के गुलाम थे, ये सर जमीनें अरब का वो तारीख दौर था जब इंसान की आकलाकी बस्तियों की गहराइयों में गिरा हुआ था और उस पर गुमराही मुसलत थी। और उस दौरे जहालत में सबसे मज़लूम तबका गुलामों का था जिसे बुनियादी इंसानी हुकूक तो मिलना बहुत दूर की बात सुकून से अपनी जिंदगी गुजारने का भी हक नहीं था।
सय्यदना हजरतें बिलाल उमईया बिन खल्फ के गुलाम थे। वो अपने आका की बकरियां चराने पहाड़ों पर जाया करते थे । और एक दिन आपका गुजर गारे हेरा की तरफ से हुआ, जहां रसूले करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम अपने यारे गार सय्यदना हजरत अब्बू बकर सिद्दिकी के साथ तशरीफ़ फ़रमा थे। अल्लाह के रसूल गयब दाने उस हबसी नौजवान को देखा तो अपने पास बुलाकर फरमाया । मैं अल्लाह का रसूल हूं, तुम्हारी इस्लाम के मुतालिक क्या राय है, सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी तो रसूल करीम के जात से पहले ही मुत्तासीर हो चूके थे। फिर आका ए कोनैन का दिलकश अंदाज ए गुफ्तगू तो हजरत बिलाल के मुँह से निकला। मैं आपके दिन को अच्छा पाता हूँ। ये कहकर हजरत बिलाल वापस लौट गए मगर उनका दिल वही हुजूर की तरफ रह गया। दूसरे दिन फिर बकरियों को वही लेकर पहुंचे। नबी ए करीम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम की और ज्यादा बातें सुनी तो दिल और भी बेकरार हो गया। जो सच्चाई आप के कल पर इस्लाम की सूरत में पहले ही वदीयत कर दी थी, वो दीने इस्लाम की सूरत में सामने आ गई और आपने इस्लाम की पुकार पर लबैक कहते हुए कलमा शहादत पढ़ा, हुजुर की गुलामी की सनद हासिल फरमाई। आप मुरीद होकर इस्लाम की दौलत से मालामाल हो गए। उस वक्त सय्यदना हज़रत बिलाल की उम्र मुबारक 28 बरस थी । आप उन पहले सात खुशनसीबों में से हैं जिनके लिए इस्लाम ने अपने दरवाजे खोल दिए।
ये इस्लाम का अव्वलिन दौर था। हुजुर पाक अल्लाह के हुक्म से फिलहाल राजदारी से इस्लाम की तबलीग़ फ़रमा रहे थे, लेकिन इस्लाम का मुनफरिद और पाकीज़ा रग ज्यादा अर्से तक कुफ्फारे मक्का से पोशीदा न रह सका। उन्होंने जल्द ही महसूस कर लिया कि उनके बाज साथियों, खासतौर पर गुलाम और ख़्वातीन में तब्दीली आ गई है । उमईया बिन खल्फ को जल्दी ये खबर मिल गई थी। के उसका गुलाम बिलाल नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का गुलाम बन गया है , और उसका शुमार आपके साथियों में होता है। इस जुर्म की बादाश में उमईया ने सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी पर ज़ुल्म वो सितम के पहाड़ गिराना शुरू कर दिए, हरा की ये जमीन अपनी गर्मी की वजह से बहुत मशहूर थी। जो धुप में तांबे की तरह गर्म हो जाती थी। उमईया, हजरतें बिलाल को तांबे की जमीन पर लेटाता और आपके सीने पर भारी पत्थर रखकर आप को दहकते हुए अंगारों पर लेटा देता , आप के बदन की चर्बी पिघल पिघल कर अंगारे बूझा दिया करती थीं। मगर आप के जुबानें मुबारक से आहत आहत के सिवा कुछ ना निकलता था ।
उमईया आपको कहता अभी भी तु मोहम्मद के खुदा से बाज आजा। लेकिन इस्लाम और सरकार की मोहब्बत उनके सीने से दुनिया की कोई भी सख्त से सख्त सजा खत्म नहीं कर सकती थी। आपके सीने में इश्क ए रसूल की हकीकी समां रोशन थी, आप आशिक ए हबीब ए खुदा थे। दुनिया की उन मारो से कहा दयार को छोड़़ते ।
हज़रत उम्र बिन आज फरमाते हैं के मैंने हज़रत बिलाल को इस हालत में देखा के उमईया ने उनको ऐसी तपती हुई जमीन पर लेटा रखा था जिस पर अगर गोश्त भी रख दिया जाता तो वो भी जल जाता। लेकिन इस हालत में भी हजरतें बिलाल अल्लाह के सिवा किसी भी दूसरे मआबूद का इनकार करते रहे। उमईया ने तैश में आकर उनके गले में रस्सी डाल दी और उन्हें मक्के के शरीर लड़कों के हवाले कर दिया। वो बदबख्त लड़के आपको मक्के की वादी में घसीटते फिरते थे और तपती हुई अंगारा रेत पर औंधे मुँह डाल देते थे और आप पर पत्थरों का ढेर लगा देते थे। लेकिन आशिक ए रसूल ने इस्लाम और सरकार का दामन फिर भी छोड़ना गवारा नहीं किया।
आप पर से इन्तहा ज़ुल्मो सितम का ये सिलसिला काफी अर्से जारी रहा, यार ए गार ए रसूल सय्यदना हज़रत सिद्दीक अकबर उस आशिक ए शादीक पर इतना ज़ुल्म होते हुए देख रहे थे। एक दिन उनसे रहा न गया तो वो उमईया के पास गए और उससे कहा के इस बेगुनाह और बेकस गुलाम पर इतना जुल्म सितम मत करो। अगर वो एक ख़ुदा की इबादत करता है तो इसमें तुम्हारा क्या नुकसान है? और अगर तुम इसके साथ एहसान करोगे तो वो एहसान आखीरत में तुम्हारे काम आएगा। उमईया ने हकारत से कहा मैं तुम्हारे ख्याली यौमें आखीरत का कायल ही नहीं, जो मेरे जी में आएगा मैं वही करूँगा। सैयदना सिद्दिक अकबर ने उसको फिर तहमूल से समझाया। के तुम ताकतवर हो उस मजबूर गुलाम पर ज़ुल्म करना तुम्हारे शायाने शान नहीं, तुम अरबों की कौमे रिवायत को धब्बा मत लगाओ, उमईया ने कहा तुम इस काले गुलाम की अगर इतने ही हम दर्द हो तो उसको खरीद क्यों नहीं लेते? सय्यदना सिद्दिक अकबर राजी हो गए और आप को आजाद करा दिया, सरकार ए दोआलम सल्ललाहू अलैहि वसल्लम को सय्यदना हज़रत बिलाल के आजाद होने की जब खबर मिली तो आप बेहद खुश हुए और हजरतें अबु बकर से फरमाया। के मुझे भी इसमें सरीक कर लो, तो यार ए गार ने अर्ज किया या रसूलल्लाह मैं तो बिलाल को आज़ाद कर चुका हूं, सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी अब आज़ाद थे। और अपना ज्यादा वक्त अपने करीम आका की बारगाह ए अकदस में गुजारते थे, उनसे कुरान मजीद की तालीम हासिल करते। हिकमत तानाई की बातें सीखते और दीन ए हक को ज्यादा से ज्यादा फैलाने की कोशिश करते।
जब हिजरत का हुक्म आया तो हज़रत बिलाल ने भी हिजरत की, और मक्के से मदीना मुनव्वरा जा पहुंचे। रसूल ए करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मोहाजरीन व अंसार का मवाखात कराया तो सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी को हज़रत अब्बू रोहया का भाई बनाया गया, जिनसे आपको बेहद मोहब्बत थी फिर जब मदीना मुनव्वरा में इस्लामी हुकूमत की दागबेल डाली गई तो एक साल के बाद ये सवाल उठा के लोगों को नमाज़ के लिए बुलाने के लिए कौन सा अंदाज अपनाया जाए। तो लोगों ने मशवरा दिया कि हर नमाज़ के बाद परचम बुलंद कर दिया जाए। कुछ ने कहा नाकुज बजाया जाये। कुछ लोगों की तजवीज थी की आग नमाज के वक्त जलाई जाए, जिसे लोग देखकर नमाज़ की तरफ आ जाएंगे, और कुछ लोगों ने ये भी कहा की एक आदमी लोगों के घरों में जाकर उनको नमाज़ के लिए बुलाया करें, इस तरह लोग नमाज़ के लिए आ जाएंगे,
लेकिन अल्लाह के रसूल ले सब तरीकों को ना पसंद फरमाया। अभी ये बहस जारी थी की हजरतें अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजि अल्लाहू तआला अनुहू, हुजूर ए पाक की खिदमत ए अकदस में हाजिर हुए और अर्ज किया की मुझे ख्वाब में एक शख्स ने अज़ान के अल्फ़ाज़ सिखाए हैं, ये कह कर उन्होंने वो कलिमात दोहराएं, हुजूर ए पाक ने वही ए इलाही के जरिए इन कलिमात को पसंद फ़रमाया, सय्यदना फारूक ए आजम ने भी इसी किस्म का ख्वाब देखा था। उन्होंने भी ख्वाब बयान कर दिया।
सरकार ए कोनैन ने सैयदना हजरतें बिलाल को हुक्म फरमाया, के अज़ान दो, फिर आपने उन को अज़ान के कलिमात सिखाएं और उनको हिदायत फरमायी के दोनों कानों में ऊँगली देकर अज़ान दो ताकि तुम्हारी आवाज बुलंद हो और दूर तक पहुंचे, चुनांचे मदीने की फिजाओं में नगम ए तौहीद बुलंद हुआ, और सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी रजि० अल्लाहू अनुहू को दुनिया इस्लाम के पहले मोअजिन ए रसूल होने का अजीम एजाज मिला। जब मस्जिद ए नबी की तामीर हुई तो एक सिरे पर एक चबूतरा बनाकर उस पर छत डाल दी गई। उस जगह रसूल ए पुरनूर के अलावा वो सहाबी रहने लगे जो हम वक्त हुजूर ए पाक की खिदमत ए अकदस मे रहते थे, और इल्म हासिल करते, उन मुक्कदस असहाब को अशहाबे शफा कहा जाता है। अरबी में शफा चबूतरे को कहते हैं , और सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी भी असहाब ए शफा में से थे।
सरकार ए दो आलम के विसाल ए मुबारक के बाद आप शाम की जंगों में शिरकत के लिए चले गए, बैतुलमुकद्दस की फतह में भी आप शरीक थे, 16 हिजरी में जब हज़रत उमर शाम गए तो हज़रत बिलाल ने जाबिया में उनका इस्तेकबाल किया। क़िब्ला अव्वल पर तौहीद का परचम लहराने की खुशी में आपने वहाँ अज़ान दी। बाद में आप मदीना मुनव्वरा रवाना हो गए तो लोगों के इसरार पर शहजाद गाने रसूल के हुकुम पर जब आपने मदीना मुनव्वरा में अज़ान दी। तो औरतें घरों से बाहर निकल आईं हर तरफ कोहराम मच गया, आप मोहब्बत ए रसूल में बेहोश होकर गिर गए और बाद में मदीना मुनव्वरा छोड़ गए और वापस शाम चले गए, 20 हिजरी में आपका बिशाल हुआ और आपको दमिश्क में बाबुल सगीर के करीब दफन किया गया, जब आप की विशाल की खबर फारूक ए आजम को मिली तो आप रोते रोते निढाल हो गए। आप रोते जाते थे और कहते जाते थे। हमारा सरदार बिलाल भी हमे जुदाई का दाग दे गया। आप वो आशिक ए रसूल थे जब यार को देखा तो सब बर्दाश्त कर लिया। मगर दामन ए मुस्तफा ना छोड़ा।
अल्लाह करीम आप के इश्क का एक जरा हम सबको भी अता फरमाए। और सय्यदना हज़रत बिलाल हबसी रजि० अल्लाहू अनुहू जैसे अजीम सहाबी ए रसूल के सदके उम्मते मुस्लिमा की बखशीश फरमाए।
FAQ.
Question - हज़रत बिलाल हबसी रजि० अल्लाहू अनुहू के वालिदैन का नाम क्या है?
Answer - हज़रत बिलाल हबसी रजि० अल्लाहू अनुहू के बलिद का नाम रबाह और वालिदा का नाम हम्मामा था।
Question - उमईया बिन खल्फ से सय्यदना हज़रत बिलाल को किसने आजाद कराया?
Answer - उमईया बिन खल्फ से सय्यदना हज़रत बिलाल को सय्यदना सिद्दिक अकबर ने आजाद कराया।