Hazarat Adam Alaihi Salam ka Waqia in Hindi हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का वाकया हिन्दी में।
अस्सलाम अलैकूम दोस्तों Hazrat Adam A.S. Ka Waqia in Hindi : आज आप लोगों को हज़रत आदम अलैहिस्सलाम अम्मा हवा, और सैतान इबलीस का वाकया बताने जा रहे हैं। हमे उम्मीद है इसे पढ़ने के बाद अपको बहुत कुछ जानने और सिखने को मिलेगा। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत से क्यों निकाला गया। अम्मा हव्वा को अल्लाह ने कैसे बनाया। इस आर्टिकल से आदम अलैहिस्सलाम की कहानी पर रोशनी डालते हैं।
अल्लाह तआला ने इस दुनिया मे सबसे पहले जिन्नात को आबाद किया। मगर उनकी सरकसी और फसाद के बाइस फरिश्तो के आफवाज भेज कर उन्हें समन्दरबुर्द कर दिया। और इस तरह जमीन के असल हकदार यानी हजरत ए इंसान के आबाद होने की राह आसान हुई ।
तो यू हमें मालूम हुआ कि रहमान के बंदे गुनाहों के बाद एक दावे नेदावत अपने सीने पर सजाते है और अपने गुनाहों का येतराफ करते हुए दोबारा अल्लाह का कुरब चाहते हैं। और उसके बरखिलाफ है इबलिस की सुन्नत अना परस्ती घमंड। और मैं ना मानो की तकरार है।
Hazrat Adam Alaihi Salam
What is the story of Prophet Adam in Hindi । आदम अलैहिस्सलाम सलाम का वाक्या हिन्दी में।
कुराने करीम में अल्लाह उस किस्से की इब्तिदा अपनी और फरिश्तों के माबैन होने वाले एक मोकालेमें से करते हैं । जब अल्लाह ताला ऐलान करते हैं मै जमीन में अपना खलीफा यानी नाऐब बनाने वाला हूँ। फरिश्ते जवाब में फरमाते हैं, क्या तू जमीन में ऐसा नाऐब बनाना चाहता है जो फसाद फैलाये और ख़ून बहाऐ। हालांकि हम तेरी हम्द के साथ तस्वीह और तेरी पाकी बयान करते हैं। जवाब में अल्लाह तआला ने फरमाया मैं जो कुछ जानता हूँ वो तुम नहीं जानते।
फिर खनखनाती मिट्टी से एक पुतला बनाया जाता है और फरिश्तों को इस बात का हुक्म भी दिया जाता है । जब मैं इसे मुकम्मल कर लु और सवार लु और इसमें रूह फूक दु तो तुम इस के सामने सजदारीस हो जाना।
हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से मरवी है। कि जब अल्लाह ने हजरत ए आदम अलैहिस्सलाम को बनाने का फैसला किया तो फरिश्तों को हुक्म हुआ के जमीन से मिट्टी लाओ। पहले हजरत जिब्राइल अलेहिस्सलाम फिर हजरत मिकाईल अलेहिस्सलाम गए। मगर जमीन उनसे कहती मैं अल्लाह की पनाह में आती हु। कि तू मुझ में से कुछ कम करें या मुझे नुकसान पहुंचाये । दोनों आकर अल्लाह पाक को बताते हैं। आखिर में हजरत इजराइल जाते हैं और जमीन के सवाल का जवाब कुछ यूं देते हैं कि मैं भी अल्लाह की पनाह मांगता हू की उसके दिए हुए हुक्म की बजावरी ना करो ।
फिर मुख्तलिफ रंगों की मिट्टी लाकर हाजिर करते हैं। इस मुख्तलिफ रंगों की मिट्टी से इंसान की तखलीक दरअसल जात पात और रंगों कौम की बनाएं हुए उसूलों की सख्तनफी करती है । और इस बात की खुली गवाही देती है कि अल्लाह के नजदीक तुम में से बेहतरीन तकवा वाले है ना की अजमी या अरबी रिवायात में आया है की वो पुतला काफी अरसे तक बेजान पड़ा रहा।
इबलीस जब वहाँ से गुजरता तो उससे मुखातिब होकर कहता। की तुम एक अज़ीम काम के लिए पैदा किये गए हो, फिर जब मुसाफिरी कायनात इंसान का हैवला मुकम्मल कर लेते है। और ख़ाक के पुतले में रुह डाल दी जाती है तो हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तखलिक मुकम्मल होती है। जब आपके अंदर रुह फुकी गयी तो आपको होश आते ही एक छींक आयी। फरिश्तों ने आपसे कहाँ कहो अलहम्दुलिल्लाह और आपके अल्हम्दुलिल्लाह के जवाब में अल्लाह तआला फरमाते हैं कि तुम पर अल्लाह का रहम हुआ।
फिर आपको हुक्म हुआ के जाकर फरिश्तों से मिलो। फरिश्तों ने आपको देखकर अस्सलामु आलेकुम कहा तो अल्लाह ताला ने फरमाया के ऐ आदम, ये आज से तुम्हारे तस्लीमात है। यू दो अहम सबक बनीनो ओ इंसान को आफ्रीनंश पर ही सीखा दिए जाते हैं एक ये की जैसे ही ईबतदा में ही एक नाखुशगवार कैफियत का सामना करना पड़ा। छिंक की सूरत में इसी तरह तुम्हारी जिंदगी में हर किस्म के मसायब आएँगे। जिसके जवाब में सब्र के साथ अल्लाह की सना और शुक्रगुजारी की रवीस इख्तियार करनी है।
इसी तरह ये भी सिखाया गया कि बाकीनोक के साथ कैसा ताल्लुक रखना है। ये शुरू में ही बता दिया गया कि ऐ बनी आदम तुम अमनो सलामती फैलाने के लिए भेजे गए हो, इसलिए तुम्हारी इब्तिदाई कलीमात हमेशा सलाम पर मबनी होने चाहिये।
उसके बाद अल्लाह ताला हजरत ए आदम को शिया के नाम सिखाते हैं। और फरिश्तों के सामने उन्हें हाजिर कर के फरिश्तों से उन आशिया का नाम पूछते हैं । तो फरिस्ते कहते हैं ऐ रब अब तू पाक है, इस बारे में हमारा इल्म कुछ नहीं। हमें तो बस उतना ही मालूम है जितना इल्म तू ने हमें अता किया है, फिर हजरत ए आदम से पूछा जाता है तो वह झट नाम बता देते है। अब बारी जाला फरिश्तों को मुखातिब करके कहते हैं कि क्या मैंने नहीं कहा था? के, मैं वो जानता हूँ जो तुम नहीं जानते, फिर सबको हुक्म होता है। के आदम के सामने सजदे में गिर पड़ो और तमाम फरिश्ते सजदे में गिर पड़ते हैं ।
सिवाय इबलीस के। इबलीस के बारे में हम वाकिफ हैं की ये दरअसल जिन्नात में से था, जो अपने जोहदो इबादत की बुनियाद पर इजाजी तौर पर। फरिश्तों वाले काम पर फ़ैज़ हो गया था। इस बागी हरकत पर अल्लाह ताला जलाल में इबलीस से दरियाफ्त करते हैं कि तुम्हें यह सज्दा ना करने से किस चीज़ ने रोका। तो वो मालाउन कहने लगा मैं इस इंसान से बेहतर हूँ। ऐ रब। तू ने मुझे आग से बनाया और इस इंसान को मिट्टी से । लम्हा भर का तकबूर वो भी हालतो काइनात के सामने। उसके तमाम किए कराए पर पानी फेर गया और वो रज़ील अपने मन से सिफारीग और दरबार से निकाल दिया गया हुक्म बारी ताला हुआ ।
तुम उत्तर यहाँ से तू इस लायक नहीं कि तकबूर करें यहाँ। बस बाहर निकल तू जलील हैं। तो वो मलाउन रोज़ ए कयामत तक की महुलत। यानी ज़िन्दगी मांगता है, जो उसे दे दी जाती है। फिर अपनी माहूलत मांगने की वजह बयान करते हुए कहता है। कि चूके तू ने मुझे गुमराह किया है। मैं भी लोगों के लिए तेरी सीधी राह पर बैठूंगा, फिर उन पर आऊंगा उनके सामने से और उनके पीछे से। और उनके दायें से और उनके बाएं से और तू उनमें से अक्सर को शुक्रगुजार ना पायेगा। यू शैतान दरबार से निकाला जाता है।
और उधर हक तआला हजरत आदम की नस्ल से तमाम आने वाली बरीनो इंसान की अरवाह को जमा कर के। अहद लेते हैं। क्या मैं तुम्हारा रब नहीं। हम सब ने इस सवाल का जवाब यक जुबान हो कर दिया था। क्यों नहीं? ऐ रब हम इस बात पर गवाह है। उस वक्त हजरत आदम तमाम इंसानों को देखते हैं। उन्हें आने वाले अंबिया की अरवाह अलग से चमकती हुई दिखाई देती है। मगर आपको इस बात पर हैरानी होती है की तमाम इंसान एक जैसे नहीं अपने रंग, रूप और नसब में सब अलग है। वो बारी ताला से दरियाफ्त करते है की ऐ अल्लाह। तू ने इन सबको एक जैसे क्यों नहीं बनाया? जवाब आता है क्योंकि मुझे अपने बंदो की तरफ से शुक्रगुजारी बहुत अज़ीज़ है।
जन्नत में कुछ अर्सा कायम के बाद। हज़रत आदम को एक खालिश महसूस होने लगती है। फ़रिश्ते तो हरदम रब की सराह में मशगूल होते हैं। अब आप क्या करें? एक इल्अमुल अस्मा आपको अता हो चुका मगर उस इल्म के बाबत तो फरिश्ते कुछ नहीं जानते? किससे गुफ्तगू करें? कहाँ करार पाए? एक दिन जब सोकर उठते हैं तो अपने सामने एक अपनी हम नो औरत को पाते हैं जो उनकी पसली से पैदा शुदा थी। पूछते है तुम कौन हो तो वो कहने लगी। औरत।
फिर पूछा कि तुम्हारी दखलीक का क्या मकसद है? तो कहने लगीं ताकि तुम मेरे अंदर करार पाओ। अब फरिश्ते हजरत आदम से पूछते हैं। के ऐ आदम इस औरत का नाम क्या है, तो आप कहते हैं हवा। बा माअनी जामदार। पूछा क्यों? तो कहने लगी क्योंकि ये एक जानदार शय से तखलीक हुई है। इससे हमें अंदाजा होता है कि मर्द औरत के जोड़े की तखलीक का मकसद आपस में अमनोआशती के साथ एक दूसरे के अंदर सुकून और करार पाना है। ये नहीं की हर दम ताकत के हुसूल की कशमकश में आपस में लड़ते रहे। फिर आप दोनों को हुक्म होता है कि जन्नत में चेन व अमन के साथ रहो।
मगर हाँ। ये ख्याल रहे के उस दरख़्त के पास कभी मत जाना। वो कौन सा दरख़्त था? कोई उसे, गंदुम बताता है तो कोई उसे सेब का दरख़्त कहता है। तसबीहात भी अलग अलग है। किसी किराये में वो दर्द और तकलीफ का दरख़्त था तो कोई उसे जावेदानी हयात का फल बताता है। मगर सच तो ये है की हम सिर्फ घूमान हीं कर सकते हैं। कुरान में वाजे अल्फ़ाज़ में दर्ज है की वो दरख़्त बिल्कुल अहम न था बल्कि रब का हुक्म अहम था। कुरान ए करीम में उस दरख़्त के बारे में अल्फाज इस कदर मुबहिन है। के लगता है जैसे अल्लाह ताला ने किसी भी दरख़्त की तरफ इशारा करके? हजरत आदम को कहा की बस इस दरख़्त का फल नहीं खा बाकी जो चाहे खाओ पिओ। मगर इंसान का फितनी तेजजासूस और शैतान का बार बार बहकावा। उन्हें उस दरख़्त की तरफ माइल करता है।
इबलीस उन्हें बड़े नासेहखना अंदाज में उन दोनों को समझाता है की देखो मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। और तुम को उस दरख़्त से इसलिए रोका जा रहा है कि कहीं तुम हमेशा यहाँ रहने वाले ना बन जाओ। आखिरकार बसरी तकाजों के आगे मजबूर हमारे ये दोनों जले अमजद। उस दरख़्त का फल खा लेते है।
हुक्म होता है के उतर जाओ तुम सब के सब यहाँ से? जाओ दुनिया में रहो। वहाँ तुम्हारा ठिकाना और तामो कायम होगा और तुम वहीं रहोगे। एक दूसरे के दुश्मन बनकर यानी इंसान और शैतान। कहा जाता है कि जब आपसे से ये खता हुई तो अल्लाह फरिश्तों को हुक्म देते हैं। के आदम से उसकी खैलत और आरिइश वापस ले लो? चुनांचे आपके सर से ताज और दीगर आराईसे उतार ली जाती है। तो आप रो रो कर चिल्लाते हैं माफी? माफी । निदा आती हैं कि ऐ आदम? क्या मुझसे भाग रहे हो? तो आप फरमाते हैं। नहीं या रब मगर आपसे शर्म आ रही है।
Hazrat Adam Alaihi Salam ka Waqia । हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का वाक्या ।
दुनिया में आकर एक अरसा सख़्त निदावत की हालत मे रोते हुए गुजारते हैं। फिर रहमान के रहमानीयत जोश में आती है और आपको पहले इल्म की तरह एक और इल्म दिया जाता है। पहला इल्म, दुनियावी उलूम के सरचश्मे यानी अक्लोख्रीद का मिला । और दूसरा पहलीवही की सूरत में उखर्वी निजात का। इस अवलीन वही से आपको तोबा का सलिका और उसके अल्फाज़ सिखाये जाते हैं और माफ कर दिया जाता है।
फिर एक शफिक उस्ताद की मानें तो बड़ी मोहब्बत से हजरत आदम को समझाया जाता है की तुम्हारा घर फिलहाल ये ही है। ये ही तुम्हारा आरजी कयाम है। मुझे याद रखना और जब जब मेरी जानिब से मेरे रसूल तुम्हारे पास हिदायत लेकर आये। तो उनकी दिवा करना? तुम ऐसा करोगे तो ना तो तुम्हें कोई गम होगा ना कोई मालल। तुम वापस अपने असली घर और मकान यानी जन्नत को हासिल कर लोगे।
अब हम हजरत आदम के रवैये का तकाबुल इबलीस से करें तो अब्दुर्रहमान और शैतान का फर्क साफ वाजेह हो जाएगा। एक गलती हजरत आदम और हवा से हुई और एक के इबलीस से। दोनों के दर्मियान फर्क क्या था। फर्क ये था कि हजरत आदम ने फौरी रुजु किया। और रो रो के माफी मांगी और अपनी हरकत पर सख्त निदामत का इजहार किया ।
जबकि इबलीस ढिठाई के साथ अपनी हरकत पर ना सिर्फ डटा रहा बल्कि अपने तकबूर की तवजीह पेश करने लगा। और जब उसे यकीन हो गया कि मैं ताकयामत मलयुन गया हूँ। तो फिर बजाए माफी मांगने के उल्टा अल्लाह को अपनी गुमराही का मोजिम ठहराने लगा। चूँकि तू ने मुझे गुमराह किया है। मैं भी लोगों के लिए तेरी सीधी राह पर बैठूंगा।
तो यू हमें मालूम हुआ कि रहमान के बंदे गुनाहों के बाद एक दावे नेदावत अपने सीने पर सजाते है और अपने गुनाहों का येतराफ करते हुए दोबारा अल्लाह का कुरब चाहते हैं। और उसके बरखिलाफ है इबलिस की सुन्नत अना परस्ती घमंड। और मैं ना मानो की तकरार है।
Conclusion
दुआ है के अल्लाह ताला हमे गुरुर तकबूर घमंड और अना जैसी बीमारियों से महफूज फरमाए। आमीन सुमा आमीन। अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकात ।।।।
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